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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 16 Dusra Devdas

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NCERT Solutions for Class 12 Chapter 16 Hindi - FREE PDF Download

Class 12 Hindi Chapter 16 Dusra Devdas revolves around the story of Sambhav and Paro, drawing parallels to the classic story of Devdas. Sambhav, much like Devdas, finds himself lost in love after a brief encounter with Paro. The story touches upon his emotional journey as he becomes deeply attached to Paro, reflecting his longing and inner struggles. Sambhav's experiences, from the grand Ganga Aarti at Har ki Pauri to his visit to the Mansa Devi temple, show his increasing devotion to winning Paro's love.

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Table of Content
1. Access NCERT Solutions Class 12 Hindi Chapter 16 Dusra Devdas
    1.1भाषा शिल्प –
    1.2योग्यता विस्तार–
2. Learnings of NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 16 Dusra Devdas
3. Important Study Material Links for Hindi Antra Class 12 Chapter 16 Dusra Devdas
4. Chapter-wise NCERT Solutions Class 12 Hindi - (Antra)
5. NCERT Class 12 Hindi Other Books Solutions
6. Related Important Study Material Links for Class 12 Hindi
FAQs


Our solutions for Class 12 Hindi Antra NCERT Solutions break the lesson into easy-to-understand explanations, making learning fun and interactive. Students will develop essential language skills with engaging activities and exercises. Check out the revised CBSE Class 12 Hindi Syllabus and start practising Hindi Class 12 Chapter 16. 


Glance on Class 12 Hindi Chapter 16 दूसरा देवदास (Antra)

  • Sambhav attends the Ganga Aarti at Har ki Pauri, where the spiritual atmosphere overwhelms him.

  • He becomes enchanted by Paro after meeting her and cannot forget her presence.

  • His visit to the Mansa Devi temple signifies his deep emotional attachment to Paro.

  • The chapter showcases the parallels between Sambhav's love and the legendary story of Devdas.

  • The cultural and spiritual significance of the locations plays a key role in the story’s development.

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Access NCERT Solutions Class 12 Hindi Chapter 16 Dusra Devdas

1. पाठ के आधार पर हर की पौड़ी होने वाली गंगा जी की आरती का भावपूर्ण वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर: हम गंगा जी की आरती देखने के लिए हर की पौड़ी के घाट पर गए। उस घाट पर गंगा जी की आरती बहुत ही भव्य रूप से की जाती है हम उस भव्य आरती का इंतजार कर रहे थे। रात्रि के समय हर की पौड़ी के घाट को हर तरफ से दियो से सजा दिया जाता है और यह दृश्य बहुत अद्भुत होता है। रात्रि के समय इस घाट पर गंगा जी की आरती ही सुनाई देती है। इन दीयों की चमक से पूरा घाट जगमगा उठता है। इतना भव्य और सुंदर दृश्य देखकर मेरी आंखें उत्तेजित हो गई। इस घाट की भव्यता देखकर मेरे भीतर भी भक्ति की लहर दौड़ पड़ी। आरती के बाद बहुत समय तक हम मां गंगा के शीतल जल में रहे। मेरे मन से यह आवाज आ रही थी मानो मां गंगा मुझे आशीर्वाद दे रही हो।


2. गंगा पुत्र के लिए गंगा मैया की जीविका और जीवन है-इस कथन के आधार पर गंगापुत्र के जीवन- परिवेश की चर्चा कीजिए।

उत्तर: इस पाठ में गंगा पुत्र उन्हें कहा गया है जिनका जीवन गंगा के भरोसे है। गंगा में लोगों द्वारा डाले गए धन को एकत्रित करके ही ये अपनी आजीविका चलाते हैं। गंगापुत्र अपनी जान को जोखिम डाल कर गंगा में गोते लगा लगा कर इन पैसों को एकत्रित करते हैं। इनके पास अपनी आजीविका का और कोई साधन नहीं है। गंगा पुत्र दो समय की रोटी के लिए अपनी जान को जोखिम में डालते हैं। इनका जीवन परिवेश अच्छा नहीं होता। परंतु और कोई आजीविका का साधन न होने के कारण इन्हें यह का मजबूरन करना पड़ता है।


3. पुजारी ने लड़की के “हम” को युगल अर्थ में लेकर क्या आशीर्वाद दिया और पुजारी द्वारा आशीर्वाद देने के बाद लड़के और लड़की के व्यवहार में अटपटापन क्यों आया?

उत्तर: लड़की और लड़का एक साथ मंदिर में गए थे, तो पूजारी ने लड़की के “हम” कहने पर यह सोचा कि ये दोनों पति- पत्नी है। पुजारी ने इस भ्रम में आ कर लड़की को आशीर्वाद कि वे हमेशा साथ रहे। पुजारी जी का यह आशीर्वाद सुनकर दोनों को अटपटा पन महसूस हुआ। लड़की के हम शब्द प्रयोग करने के कारण पुजारी जी को भ्रम हो गया। दोनों को ही लज्जा महसूस हुई और एक दूसरे से आंख भी नहीं मिला पा रहे थे। दोनों ही एक दूसरे से अटपटा व्यवहार कर रहे थे उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि किस प्रकार पुजारी जी को बताया जाए की लड़की ने हम का प्रयोग क्यों किया था।


4. इस छोटी सी मुलाकात ने संभव के मन में क्या हाल-चाल उत्पन्न कर दी? इसका सूक्ष्म विवेचन कीजिए।

उत्तर: मंसा देवी के मंदिर जाने के लिए जब संभव केबिल कार में बैठा था तो उसके मन में अनेक कल्पना उठ रही थी। उसकी कल्पना उस लड़की से मिलने की थी और उसे पाने की। इस उम्मीद के साथ मंदिर जा रहा था कि वह लड़की उसे दोबारा मिलेगी। पहली मुलाकात से ही संभव उस लड़की को चाहने लगा था और भीतर ही भीतर प्रेम जाल में बंधता जा रहा था। उस लड़की की पहली झलक संभव के मन में बस गई थी। पारो की सुंदर छवि को वह भुला नहीं पा रहा था। गुलाबी साड़ी में पारो बहुत सुंदर लग रही थी, संभव को यही दृश्य बार-बार याद आ रहा था।


5. मंसा देवी जाने के लिए केबिल कार में बैठी संभव के मन में जो कल्पनाएं उठ रही थी, उनका वर्णन कीजिए।

उत्तर: संभव को अपने जीवन में पहली बार किसी लड़की से प्रेम का आभास हुआ था। उसकी कल्पनाओं में संभव पूर्ण रूप से खोया हुआ था। वे मंसादेवी के मंदिर इसलिए जाना चाहता था क्योंकि उसे आस थी की शायद वह लड़की उससे दोबारा भेंट कर सके। संभव की कल्पना उस लड़की से मिलने और उसे पाने की थी। संभव अपनी नानी के घर गया था वहीं से वह उस घाट पर उस लड़की से मिला था। पहली मुलाकात के बाद उसके मन में बस चुकी थी इसलिए वह मंसा देवी जाने के लिए केबिल कार में बैठा। वह गुलाबी रंग की केबिल कार में बैठा।


6.”पारो बुआ, पारो बुआ इनका नाम है….. उसे भी मनोकामना का पीला-लाल धागा और उसमें पड़ी गिठा का स्मरण हो आया”। कथन के आधार पर कहानी के संकेत पूर्ण आशय पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर: लड़की के भाई के बेटे ने इसे पारो हुआ कहकर संबोधित किया तो संभव देवदास की पारो के ख्यालों में खो गया। वह सोचने लगा कि देवदास में देवदास की प्रेमिका पारो थी, और मेरी प्रेमिका का नाम भी पारो है। संभव ने अपनी पारो को प्राप्त करने के लिए मंसा देवी के मंदिर में जाकर मन्नत का धागा बांदा और दुआ की कि उसे पारो मिल जाए और अपने साथ उस लड़के की मधुर स्मृतियां लेकर मंदिर से वापस आ गया। संभव मन ही मन पारो से प्रेम करने लगा था। संभव उस गुलाबी साड़ी वाली लड़की का नाम जानना चाहता था तभी उस लड़की के भतीजे नहीं संभव को “ पारो बुआ, पारो बुआ।“तभी उसे उस लड़की का नाम पता चला।


7. ’मनोकामना की गांठ भी अद्भुत अनूठी है, इधर बांधी उधर लग जाती है।‘इस कथन के आधार पर पारो की मनोदशा का वर्णन कीजिए।

उत्तर: पारो भी पहली ही मुलाकात में संभव को पसंद करने लगी थी। जैसे ही पारो मनोकामना की घाट बांधती है तुरंत ही उसे संभव नजर आ जाता है। पारो की दशा का वर्णन इस पंक्ति से किया जाता है। पारो अपने मन ही मन में बोलती है कि-“मनोकामना की गांठ भी अद्भुत अनूठी है, इधर बांधी उधर लग जाती है।“इस पंक्ति से पता चलता है कि पारो संभव की स्मृति को अपने भीतर बसा चुकी थी। दोनों के भीतर मिलने की उत्सुकता समान थी। जिस प्रकार संभव ने पारो को पाने के लिए मनसा देवी मे मन्नत मांगी थी इसी प्रकार पारो भी संभव पाने के लिए मनसा देवी के मंदिर आई थी और वहां उसने मन्नत की चुनरी बांधी। मन्नत मांगते हैं संभव उसके समक्ष आ गया और वह अत्यंत ही खुश हो गई।


8. निम्नलिखित वाक्यों का आशय स्पष्ट कीजिए:

(क)”तुझे तो तैरना भी ना आवे। कहीं पैर फिसल जाता तो मैं तेरी मां को कौन सा मुंह दिखाती।“

उत्तर: संभव हर की पौड़ी के घाट से नहाकर नानी के घर देर से आया था तब उसकी नानी ने संभव से कहा की मुझे तुम्हारी फिक्र हो रही थी कि कहीं गंगा मे स्नान के समय तेरा पैर फिसल कर गंगा जी में तो नहीं गिर गया। नानी संभव से कहती है कि तुझे तैरना भी नहीं आता। अगर तुझे कुछ हो जाता तो मैं तुम्हारी मां को क्या बताती।

(ख) ”उसके चेहरे पर इतना विभोर विनीत भाव था मानो उसने अपना सारा अह्म त्याग दिया है, उसके अंदर स्व से जनति कोई-कंठु शेष नहीं है, वह शुद्ध रूप से चेतन स्वरूप, आत्माराम और निर्मलानंद है।“

उत्तर: संभव ने गंगा नदी के बीचो-बीच एक व्यक्ति को देखा जो सूरज को जल चढ़ा रहा था। उस व्यक्ति को देखकर संभव को ऐसा लगा जैसे उस व्यक्ति के अंदर अहंकार बिल्कुल नहीं है। व्यक्ति बहुत ही शांत नजर आ रहा था। उसे देख कर ऐसा लग रहा था मानो उसने अपना सब कुछ भगवान को समर्पित कर दिया है और अब उसके पास कुछ नहीं है लेकिन फिर भी वह ईश्वर की भक्ति में लीन है। उस पवित्र व्यक्ति को देखकर संभव को लगा जैसे वह व्यक्ति स्वाभिमान संपन्न है उसे किसी चीज की कमी नहीं है। अहंकार त्याग करने के कारण उस व्यक्ति के जीवन में कोई दुख प्रतीत नहीं हो रहा था।

(ग) ”एकदम अंदर के प्रकोष्ठ में चामुंडा रूप धरिणी मंसा देवी स्थापित थी। व्यापार यहां भी था।“

उत्तर: संभव अपनी नानी के घर गया था|वहाँ से वह मनसा देवी के मंदिर जा पहुँचा उसने वहाँ की भव्यता को देखा और चकित रह गया। ऊपर दी गई पंक्तियों के माध्यम से संभव मंसादेवी के बारे में बता रहा है। मंसा देवी के मंदिर में संभव ने चामुंडा रूप में स्थापित मंसा देवी के दर्शन किए तथा मंदिर के आसपास लगी दुकानों को देखकर वह सोचने लगा कि मंदिर के साथ-साथ यहां व्यापार का भी अच्छा साधन है। मंदिर के बाहर लगी दुकानों को देखकर ऐसा लगता है की मंदिर होने के साथ-साथ या लोगों की आजीविका का साधन भी है।


9. ’दूसरा देवदास ‘ कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट किजिए।

उत्तर: इस कहानी के पात्र संभव अपने प्रेमिका पारो से मिलने के लिए बहुत व्याकुल रहता हैं जिस तरह शरतचन्द्र के नाटक में ‘ देवदास ‘ में अपनी पारो से मिलने कि लिए व्याकुल रहता है ।अत: इस कहानी को शीर्षक ‘ दूसरा देवदास ‘ सार्थक है।पारो के एक मात्र दर्शन से संभव उसके प्रेम में डूब जाता हैं।संभव ने उस गुलाबी साड़ी वाली लड़की के बारे में जानने के लिए उसे मंसा देवी मंदिर में खोजा। संभव के भीतर पारो की छवि छप चुकी थी ।उसे पाने के लिए उसने मंसा देवी के मंदिर में  मन्नत का धागा बांधा। पारो भी मन ही मन संभव को पसंद करने लगी थी उसने भी मन्नत की चुनरी संभव से मिलने के लिए बांधी और तभी संभव उससे मिल जाता हैं।जैसे ही संभव पारो से मिलता है उसे लगता है मानो उसका जीवन सार्थक हो गया।


10. 'हे ईश्वर! उसने कब सोचा था कि मनोकामना का मौन उद्गार इतनी शीध्र सुभ परिणाम ।‘ – आशय स्पष्ट किजिए।

उत्तर: संभव को पारो से पहली नजर में ही प्रेम हो गया था उसने उस लड़की को पाने के लिए मंसा देवी के मंदिर में मन्नत की गाँठ बांधी। संभव मन ही मन चाहत था कि ईश्वर उसे पारो से मिलवा दे इसी उम्मीद में वह मंसा देवी के मंदिर गाँठ बांधने गया था। संभव की तरह ही पारो भी मंदिर में संभव से मिलने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करने आई थी उसने वहां मन्नत मांगते हुए चुनरी बांधी। कुछ समय बाद ही संभव को मंदिर के बाहर पारो मिल गई तो वह सोचने लगा की – “हे ईश्वर! मनोकामना का इतना शीघ्र शुभ परिणाम। ‘ वह पारो को देखकर अत्यंत उत्साहित हो उठा। पारो भी संभव हो देखकर खुशी से शर्माने लगी। उन दोनों की मनोकामना इतने शीघ्र शुभ परिणाम लाई इसका उन्हें कोई अंदाजा नहीं था।


प्रश्न संख्या: 1

1. इस पाठ का शिल्प आख्यता की ओर से लिखते हुए बना है। पाठ से कुछ उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए।

उत्तर: हमने पाठ से कुछ उदाहरण लिए है जो निम्नलिखित है:

(क) यकायक सहस्र दीप जल उठते है पंडित अपने आसान से उठ खड़े होते है ।

(ख) संभव हंसा। उसके एक सार खूबसूरत दांत सांवले चेहरे पर फब उठे।

(ग) गंगा सभी के स्वयंसेवक खाकी वर्दी में मुस्तैदी से घूम रहे हैं।

(घ) दूसरा यह दृश्य देखकर मालूम होता है कि वे संबोधन गंगा जी के गर्भ तक पहुंच रहे हैं।


प्रश्न संख्या: 2

2. पाठ में आए पूजा अर्चना के शब्दों और इनसे संबंधित वाक्यों को छांट कर लिखिए।

उत्तर: 

(क) आरती- आरती शुरू होने वाली थी।

(ख) चंदन और सिंदूर- हर के पास चंदन और सिंदूर की कटोरी थी।

(ग) स्नान- आरती से पहले स्नान! 

(घ) मूर्तियों-  गंगा जी की मूर्ति के साथ साथ, चामुंडा, बालकृष्ण, हनुमान और सीताराम की मूर्तियों की श्रंगार पूर्ण स्थापना है।

(ड़) नीलांजलि- पीतल की नीलांजलि में बत्तियां घी भिगोकर रखी हुई है।


भाषा शिल्प –

1. इस पाठ का शिल्प आख्याता (नैरेटर-लेखक) की ओर से लिखते हुए बना है-पाठ से कुछ उदाहरण देकर सिद्ध कीजिए।
आख्याता हर की पौड़ी का स्वयं वर्णन करता है। कुछ उदाहरण :

  • औरतें डुबकी लगा रही थीं। बस उन्होंने तट पर लगे कुंडों से बँधी जंजीर पकड़ रखी है।

  • संभव का ध्यान कलावे की ओर नहीं था। वह गंगाजी की छटा को निहार रहा था।

  • संभव आगे बढ़कर कहना चाहता था, ‘देखिए इसमें मेरी कोई गलती नहीं थी ‘।’


2. पाठ में आए पूजा-अर्चना के शब्दों तथा इनसे संबंधित वाक्यों को छाँटकर लिखिए।

  • पूजा-अर्चना के शब्द तथा संबंधित वाक्य :

  • आरती : पंडितगण आरती के इंतजाम में व्यस्त हैं।

  • कलावा : लाल रंग का कलावा बाँधने के लिए हाथ बढ़ाया।

  • पीतल की नीलांजलि : पीतल की नीलांजलि में सहस्र बत्तियाँ घी में भिगोकर रखी हुई हैं।

  • स्नान : हमें स्नान करके पूजा करनी चाहिए।

  • आराध्य : जो भी आपका आराध्य हो चुन लें।

  • चंदन का तिलक : हर एक के पास चंदन और सिंदूर की कटोरी है।

  • दीप : पानी पर दीपकों की प्रतिछवियाँ झिलमिला रही है।

  • चढ़ावा : एक वृद्ध चढ़ावे की छोटी थैली लिए बैठे थे। गाँठ : संभव ने पूरी श्रद्धा के साथ मनोकामना की गाँठ लगाई।


योग्यता विस्तार–

1. चंद्रधर शर्मा गुलेरी की ‘उसने कहा था’ कहानी पढ़िए और उस पर बनी फिल्म देखिए।
यह कार्य विद्यार्थी स्वयं करें।

2. हरिद्वार और उसके आस-पास के स्थानों की जानकारी प्राप्त कीजिए।
यह कार्य विद्यार्थी स्वयं करें।

3. गंगा नदी पर एक निबंध लिखिए।

गंगा –

हमारे देश को बनाने में प्रकृति की दो अद्भुत चीज़ों का बहुत बड़ा हाथ है। वे हैं हिमालय और गंगा। तुम जानते हो कि यदि हमारे देश के उत्तर में हिमालय न होता तो मानसून से होनेवाली वर्षा का पानी हमें न मिलता। साथ ही उत्तर के पठार से आने वाली ठंडी हवाएँ हमारे देश के मैदान को बंजर-सा बना देती। इस तरह हिमालय हमारे देश का संरक्षक है। वह पानीभरी मानसूनी हवाओं को इधर ही रोक लेता है और बर्फ़ली ठंडी हवाओं को उस पार से ही लौटा देता है।

पर केवल इतने से ही हमारे देश का बड़ा मैदान उपजाऊ और निवास-योग्य नहीं बन गया। हिमालय की चोटियों पर बर्फ़ के रूप में जमे पानी को नीचे मैदान तक उतारकर भी तो लाना था ताकि वह यहाँ के निवासियों को जीवन दे सके। यह काम गंगा नदी ने किया। गंगा एक प्रकार से भारसीय सभ्यता का आधार रही, है। इसी में बहकर आई हुई, उपजाऊ मिट्दी से वह विस्तृत मैदान बना है जिसमें प्राचीन आर्य-सभ्यता का उदय और विकास हुआ। इसी के किनारे हमारे देश के इतिहास की सबसे प्रमुख घटनाएँ घटी हैं।

कहा जाता है कि अपने साठ हजार पूर्वजों को तारने के लिए भगीरथ बड़ी तपस्या करके गंगा को पृथ्वी पर उतार कर लाए थे। लगता है भगीरथ एक महान इंजीनियर थे जो पहाड़ों को काट-काटकर तथा अन्य कई धाराओं को गंगा के साथ मिलाकर इसे मैदान की ओर लाए होंगे। इस कथा से भगीरथ के अथक परिश्रम का पता लगता है। इसी कारण आज भी कठोर परिश्रम को भगीरथ-प्रयत्न कहते हैं।

गंगा का उद्गम गंगोत्री से उनतीस किलोमीटर ऊपर गोमुख नामक स्थान पर है। गंगोत्री केदारनाथ से लगभग चालीस किलोमीटर आगे है और लगभग पाँच हज़ार मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ बर्फ़ीले पहाड़ों की श्वेत, स्वच्छ बर्फ़ ही पिघल-पिघलकर नन्हीं-सी नदी के रूप में नीचे की ओर बहना आरंभ करती है। यहाँ इसे भगीरथी कहते हैं। पर्वत की घाटियों के बीच भागीरथी कूदती-फाँदती, अठखेलियाँ करती, चट्टानों से टकराती, प्रपात बनाती हुई अदम्य बेग और उत्साह से आगे बढ़ती है। हरे-भरे पर्वतों के बीच भागीरथी पिघली हुई चाँ की बहती धारा-सी प्रतीत होती है। देवप्रयाग में यह अपनी सहेली अलकनंदा को अपने साथ ले लेती है। यहीं से इसका नाम गंगा पड़ता है और इसी नाम से यह यह बंगाल तक पुकारी जाती है।

हिमालय की पर्वत-श्रेणियों के बीच लगभग 175 किलोमीटर की दूरी पारकर गंगा ऋषिकेश पहुँचती है। यहाँ बहुत-से आश्रम बने हुए हैं जहाँ धार्मिक लोग रहकर स्वाध्याय और तपस्या करते हैं। ऋषिकेश से तीस किलोमीटर नीचे हरिद्वार बहुत बड़ा तीर्थ स्थान है। हर बारहवें वर्ष यहाँ कुंभ का मेला लगता है। यहाँ का प्राकृतिक दृश्य बहुत सुदर तथा वातावरण बहुत शांत है। हरिद्वार में बहुत-से मंदिर और धर्मशालाएँ बनी हुई हैं। प्रतिवर्ष लाखों यात्री विभिन्न पर्वों पर गंगास्नान करने हरिद्वार आते हैं।

हरिद्वार में ही गंगा से प्रसिद्ध गंग नहर निकाली गई है जो लगभग 18 लाख एकड़ भूमि की सिचाई करती और अपने किनारे के प्रदेशों को धन-धान्य, से भरती हुई कानपुर तक जाकर फिर गंगा में मिल जाती है। इस नहर से बिजली भी बनाई जाती है। गंगा तो निरंतर बहती रहती है। इतिहास या भूगोल की किसी घटना से बँधकर यह रुक नही जाती। बहना ही इसका जीवन है।

हस्तिनापुर के आगे गंगा पहले दक्षिण और फिर दक्षिण-पूर्व दिशा में बहती हुई भारत के प्रसिद्ध औद्योगिक नगर कानपुर पहुँचती है। यहाँ कपड़े और चमड़े के बड़े-बड़े कारखाने हैं। इन सभी कारखानों के लिए पानी गंगा से ही आता है। यदि नदियाँ न हों तो हमारे अधिकाँश उद्योग-धंधे ठप हो जाएँ। यही कारण है संसार के लगभग सभी बड़े-बड़े औद्योगिक नगर किसी न किसी नदी या समुद्र के किनारे बसे हैं। कानपुर से लगभग 200 किलोमीटर आगे प्रयाग है जो तीर्थराज माना जाता है। प्रयाग को ही आजकल इलाहाबाद कहते हैं। यहाँ गंगा और यमुना नदी का संगम होता है। प्रत्येक बारहवें वर्ष यहाँ भी कुंभ का प्रसिद्ध मेला लगता है।

प्रयाग के आगे पूरब की ओर बहती हुई गंगा वाराणसी पहुँचती है जहाँ विश्वनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। गंगा यहाँ अर्द्धचंद्राकर रूप में बहती है। इसके किनारे-किनारे यहाँ अनेक घाट बने हुए हैं जिनमें से कई बहुत प्राचीन हैं। शाम के समय शंख और घंटे की ध्वनि के साथ जब आरती होती है तब यहाँ का दृश्य बहुत अच्छा लगता है। बहुत से लोग इन घाटों की शोभा देखने के लिए ही नावों में बैठकर नदी में सैर करते हैं। वाराणसी से कुछ आगे गंगा बिहार में प्रवेश करती है। हिमालय से निकली हुई घाघरा, गंडक और कोशी नदियाँ यहाँ बाई ओर से आकर इसमें मिलती हैं। मध्य पठारों की लाल भूमि से निकली सोन नदी पटना के निकट आकर गंगा में अपना लाल जल मिलाती है।

इन सभी नदियों का पानी लेकर गंगा का आकार बहुत विशल हो जाता है। पर गंगा का हृदय भी तो कितना विशाल है !. यह अपने पास आनेवाली सभी नदियों का पानी अपने में मिलाकर अपने जल से एकाकार करती जाती है। गंगा किसी में भेदभाव नहीं करती। यह सभी को समान भाव से अपने साथ ले जाना चाहती है। सूरदास ने ठीक ही कहा था :

इक नदिया इक नार कहावत मैलो ही नीर भरो।
जब दोनों मिलि एक बरन भए सुरसरि नाम परो।

पटना के बाद भागलपुर होती हुई गंगा बिहार राज्य में पूर्वी सीमा पर राजमहल की पहाड़ियों से टकराती हुई बंगाल में प्रवेश करती है। यहाँ धुलियान से आगे गंगा की दो धाराएँ हो जाती हैं। इनमें से एक धारा बांग्ला देश में चली जाती है। और पदा नाम ग्रहण करती है। दूसरी धारा हुगली के नाम से कलकत्ता की ओर जाती है। कलकत्ता भारत का प्रसिद्ध व्यापारिक नगर और बंदरगाह है। समुद्र के किनारे पहुँचने के कारण गंगा की चाल बहुत मंथर हो जाती है। लगता है गंगा जैसे अपने गंतव्य पर पहुँचकर शांति प्राप्त कर रही हो।

अपने लक्ष्य को प्राप्तकर किसे प्रसन्नता नहीं होती ! गंगा की इतनी लंबी यात्रा मानो समुद्र से मिलने के लिए ही थी। यह अपने डेल्टा की अनेक धाराओं से समुद्र का आलिंगन कर उसके साथ एकाकार हो जाती है। आनंद के उस असीम सागर में मिलकर गंगा अपने स्वरूप को बिलकुल ही बिसरा देती है।

पर कब तक ? फिर समुद्र का पानी भाप बनकर उड़ता है और मानसून के साथ जाकर हिमालय की चोटियों पर जम जाता है। फिर श्वेत, स्वच्छ बर्फ़ पिघलती है और गंगा एक बार फिर अपनी लंबी यात्रा उसी प्रसन्नता और उसी उत्साह से आरंभ करती है ताकि यह एक बार फिर हम भारतवासियों का उपकार करने का अवसर पा सके।


4. आपके नगर/गाँव में नदी-तालाब-मंदिर के आस-पास जो कर्मकांड होते हैं उनका रेखाचित्र के रूप में लेखन कीजिए।

यह कार्य विद्यार्थी स्वयं करें।


Learnings of NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 16 Dusra Devdas

  • Understand the symbolic meaning behind Sambhav’s visit to Har ki Pauri and the Mansa Devi temple.

  • Analyse Sambhav’s emotional state and his growing attachment to Paro.

  • Explore the similarities between this story and the original 'Devdas.'

  • Learn about the importance of cultural rituals and places like Haridwar in the narrative.

  • It gives insight into the complex emotions of love, devotion, and longing that drive the characters.


Important Study Material Links for Hindi Antra Class 12 Chapter 16 Dusra Devdas

S.No. 

Important Study Material Links for Chapter 16

1.

Class 12 Dusra Devdas Questions

2.

Class 12 Dusra Devdas Notes



Conclusion

Chapter 16 Dusra Devdas provides a modern retelling of the timeless theme of unfulfilled love, similar to the original story of Devdas. Through Sambhav's journey, the chapter highlights the emotional intensity that love can bring, showcasing his attachment to Paro. The NCERT Solutions guides students in understanding the intricate emotions, cultural references, and significant events that shape the story. These solutions offer detailed answers that help students analyse the text thoroughly and prepare well for their exams.


Chapter-wise NCERT Solutions Class 12 Hindi - (Antra)

After familiarising yourself with the Class 12 Hindi 16 Chapter Question Answers, you can access comprehensive NCERT Solutions from all Hindi Class 12 Antra textbook chapters.




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FAQs on NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 16 Dusra Devdas

1. What does the Ganga Aarti scene symbolise in Chapter 16 Dusra Devdas of Class 12 Hindi?

The Ganga Aarti symbolises the spiritual awakening and emotional intensity Sambhav experiences as he connects with his inner feelings.

2. How does Sambhav's encounter with Paro affect him in NCERT Class 12 'Dusra Devdas'?

Sambhav becomes emotionally attached to Paro after their brief meeting, and her presence lingers in his mind, influencing his actions and thoughts.

3. What role does the Mansa Devi temple play in the story Chapter 16 'Dusra Devdas'?

The Mansa Devi temple represents Sambhav's deepening devotion and his desire to win Paro's love, as he ties a sacred thread praying for their union.

4. How does the story 'Dusra Devdas' compare to the original Chapter 16 NCERT Devdas?

Both stories revolve around the theme of unfulfilled love, with Sambhav's emotional journey mirroring that of Devdas, though in a modern context.

5. Why does Sambhav tie a sacred thread at Mansa Devi temple in NCERT Chapter 16 'Dusra Devdas'?

Sambhav ties the thread as a prayer, hoping to fulfil his desire to be with Paro, reflecting his growing emotional attachment.

6. What cultural elements are highlighted in Chapter 16 of Class 12 Hindi?

The chapter highlights significant cultural elements like the Ganga Aarti, and Mansa Devi temple rituals, and the deep spiritual connection to these places.

7. How does chapter 16 'Dusra Devdas' reflect Sambhav's inner turmoil?

Sambhav’s internal conflict is evident through his longing for Paro and his inability to forget her, much like the emotional journey of Devdas.

8. What is the significance of the title 'Dusra Devdas' in Chapter 16?

The title signifies the parallel between Sambhav’s love story and the classic tale of Devdas, where both protagonists struggle with love and longing.

9. How does Sambhav's visit to the temple reflect his hopes for Class 12 Dusra Devdas?

Sambhav’s visit to the temple and his prayer ritual symbolises his hope to be united with Paro, marking a significant emotional moment in the story.

10. What lessons can students learn from the story Chapter 16 Class 12 Hindi Dusra Devdas?

Students can learn about the complexities of love, the impact of emotions on human behaviour, and the importance of cultural rituals in shaping personal experiences.