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NCERT Solutions for Class 12 Chemistry In Hindi Chapter 16 Chemistry In Everyday Life In Hindi Mediem

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CBSE Date Sheet 2025 Class 12 Released

NCERT Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 16 Chemistry in Everyday life in Hindi Mediem

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NCERT, which stands for The National Council of Educational Research and Training, is responsible for designing and publishing textbooks for all the classes and subjects. NCERT Textbooks covered all the topics and are applicable to the Central Board of Secondary Education (CBSE) and various state boards.


Class:

NCERT Solutions for Class 12

Subject:

Class 12 Chemistry

Chapter Name:

Chapter 16 - Chemistry In Everyday Life

Content-Type:

Text, Videos, Images and PDF Format

Academic Year:

2024-25

Medium:

English and Hindi

Available Materials:

  • Chapter Wise

  • Exercise Wise

Other Materials

  • Important Questions

  • Revision Notes



We, at Vedantu, offer free NCERT Solutions in English medium and Hindi medium for all the classes as well. Created by subject matter experts, these NCERT Solutions in Hindi are very helpful to the students of all classes. 

Competitive Exams after 12th Science
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Access NCERT Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 9 – दैनिक जीवन में रसायन

1. हमें औषधों को विभिन्न प्रकार से वर्गीकृत करने की आवश्यकता क्यों है? 

उत्तर: औषधों को विभिन्न प्रकार से वर्गीकृत करने के अनेक लाभ हैं। 

उदाहरणार्थ:  फार्माकोलोजिकल प्रभाव के आधार पर वर्गीकरण डॉक्टरों के लिए लाभदायक है क्योंकि इससे उन्हें किसी रोग विशेष के उपचार के लिए उपलब्ध सभी औषधों की जानकारी मिलती है। इसी प्रकार जैवरासायनिक प्रक्रम पर प्रभाव के आधार पर वर्गीकरण से वांछित औषध के संश्लेषण के लिए सही यौगिक के चयन में सहायता मिलती है। अणु लक्ष्यों के आधार पर वर्गीकरण से केमिस्टों को किसी विशेष ग्राही स्थल के लिए सर्वाधिक प्रभावी औषध के निर्माण में सहायता मिलती है। स्पष्ट है कि प्रत्येक प्रकार के वर्गीकरण की अपनी उपयोगिता है। 


2. औषध रसायन के पारिभाषिक शब्द, लक्ष्य-अणु अथवा औषध-लक्ष्य को समझाइए। 

उत्तर: औषध-लक्ष्य:

औषध सामान्यत: जैविक वृहदाणुओं जैसे-कार्बोहाइड्रेट, लिपिड, प्रोटीन, न्यूक्लीक अम्ल के साथ अन्योन्यक्रियाएँ करते हैं जिन्हें औषध लक्ष्य कहते हैं। 


3. उन वृहद-अणुओं के नाम लिखिए जिन्हें औषध-लक्ष्य चुना जाता है। 

उत्तर: उन वृहद-अणुओं के नाम निम्नलिखित  है:

प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, लिपिड, न्यूक्लीक अम्ल आदि। 


4. बिना डॉक्टर से परामर्श लिए दबाइयाँ क्यों नहीं लेनी चाहिए? 

उत्तर: बिना डॉक्टर के परामर्श के दवाइयाँ इसलिए नहीं लेनी चाहिए क्योंकि अधिक मात्रा में दवा विषैला प्रभाव डालती है तथा जीवधारी के कार्यों में व्यवधान उत्पन्न करती है। 


5. रसायनचिकित्सा शब्द की परिभाषा लिखिए। 

उत्तर: रसायन विज्ञान की वह शाखा जो रसायनों के द्वारा रोगों के उपचार से संबंधित होती है, रसायन चिकित्सा कहलाती है। 


6. एन्जाइम की सतह पर औषध को थामने के लिए कौन-से बल कार्य करते हैं? 

उत्तर: आयनिक बन्धन, हाइड्रोजन बन्धन, द्विध्रुव-द्विध्रुव अन्योन्यक्रियाएँ या वाण्डरवाल्स अन्योन्यक्रियाएँ। 


7. प्रतिअम्ल एवं प्रति-एलर्जी औषध हिस्टैमिन के कार्य में बाधा डालती हैं, परन्तु ये एक-दूसरे के कार्य में बाधक क्यों नहीं होती? 

उत्तर: औषधों का प्रयोग अंग विशेष की व्याधियों को दूर करने में किया जाता है लेकिन ये अन्य को प्रभावित नहीं करती हैं क्योंकि ये अलग-अलग ग्राहियों  पर कार्य करती हैं। उदाहरणार्थ: हिस्टैमिन का स्रावण एलर्जी उत्पन्न करता है। यह आमाशय में HCl विमोचित करने के कारण अम्लता  भी उत्पन्न करता है। प्रतिएलर्जिक तथा प्रतिअम्ल भिन्न ग्राहियों पर कार्य करते हैं। अत: प्रतिहिस्टैमिन एलर्जी दूर करते हैं जबकि प्रतिअम्ल अम्लता दूर करते हैं। 


8. नॉरऐड्रीनेलिन का कम स्तर अवसाद का कारण होता है। इस समस्या के निदान के लिए किस प्रकार की औषध की आवश्यकता होती है? दो औषधों के नाम लिखिए। 

उत्तर: इस समस्या के निदान के लिए प्रतिअवसादक औषधों  की आवश्यकता होती है। ये औषध नोरएड्रिनेलिन के निम्नीकरण को उत्प्रेरित करने वाले एंजाइमों को बाधित करते हैं। इससे नेरएड्रिनेलिन धीरे उपापचयित होता है और ग्राही को लंबे समय तक सक्रियित रखता है। जिससे अवसाद कम हो जाता है। 

उदाहरणार्थ: इप्रोनाइजिड, फिनल्जिन आदि। 


9. ‘वृहद्-स्पेक्ट्रम जीवाणुनाशी’ शब्द से आप क्या समझते हैं? समझाइए। (2011) 

उत्तर: वे प्रतिजैविक जो कि कई प्रकार के हानिकारक सूक्ष्म-जीवों के प्रति प्रभावी होते हैं, ‘वृहद-स्पेक्ट्रम प्रतिजैविक’ कहलाते हैं। उदाहरणार्थ-टेट्रासाइक्लिन, क्लोरम्फेनिकोल आदि। 


10. पूतिरोधी तथा संक्रमणहारी किस प्रकार से भिन्न हैं? प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए। 

उत्तर: पूतिरोधी वे रसायन होते हैं जो सूक्ष्मजीवियों को मार देते हैं या उनकी वृद्धि रोकते है तथा जीवित ऊतकों को हानि नहीं पहुंचाते हैं। विसंक्रामी सूक्ष्म-जीवों को मार देते हैं तथा जीवित मानव ऊतकों को हानि पहुँचाते हैं।

उदाहरणार्थ: 

पूतिरोधी: डिटॉल, आयोडोफॉर्म, टिंक्चर आयोडीन।

 विसंक्रामी: क्लोरीन (> 0.4 ppm), फीनॉल (> 1 % विलयन)। 


11. सिमेटिडीन तथा दैनिटिडीन सोडियम हाइड्रोजनकार्बोनेट अथवा मैग्नीशियम या | ऐलुमिनियम हाइड्रॉक्साइड की तुलना में श्रेष्ठ प्रतिअम्ल क्यों हैं? 

उत्तर: सिमेटिडीन तथा रैनिटिडीन श्रेष्ठ प्रतिअम्ल हैं क्योंकि ये आमाशय भित्ति में उपस्थित ग्राहियों तथा हिस्टैमिन के मध्य अन्योन्यक्रिया को रोकते हैं जिसके परिणामस्वरूप कम मात्रा में अम्ल मुक्त होता है। दूसरी ओर, सोडियम हाइड्रोजन कार्बोनेट अथवा मैग्नीशियम या ऐलुमिनियम हाइड्रॉक्साइड केवल लक्षणों पर कार्य करते हैं. कारण पर नहीं 


12. एक ऐसे पदार्थ का उदाहरण दीजिए जिसे पूतिरोधी तथा संक्रमणहारी दोनों प्रकार से प्रयोग किया जा सकता है। 

उत्तर: फीनॉल का 0.2% विलयन पूतिरोधी का कर्य करता है जबकि 1% विलक्नविसंक्रामी का कार्य करता है। 


13. डेटॉल के प्रमुख संघटक कौन-से हैं? 

उत्तर: डेटॉल क्लोरोजाइलिनोल तथा α -टरपीनिऑल का मिश्रण होता है। 


14. आयोडीन का टिंक्चर क्या होता है? इसके क्या उपयोग हैं? । 

उत्तर: आयोडीन का ऐल्कोहॉल या जल में 2 – 3 % विलयन आयोडीन का टिंक्चर कहलाता है। यह शक्तिशाली पूतिरोधी होता है। इसका प्रयोग घावों पर किया जाता है। 


15. खाद्य पदार्थ परिरक्षक क्या होते हैं? 

उत्तर: खाद्य परिरक्षक वे पदार्थ होते हैं जो सूक्ष्म-जीवों द्वारा होने वाले किण्वन, अम्लीकरण या अन्य विघटन को बाधित करके भोजन को खराब होने से रोकते हैं। 


16. ऐस्पार्टेम का प्रयोग केवल ठण्डे खाद्य एवं पेय पदार्थों तक सीमित क्यों है? 

उत्तर: यह पकाने के ताप पर विघटित हो जाता है अतः इसका प्रयोग केवल ठण्डे खाद्य एवं पेय पदार्थों तक सीमित है। 


17. कृत्रिम मधुरक क्या हैं? दो उदाहरण दीजिए। 

उत्तर: कृत्रिम मधुरक रासायनिक पदार्थ होते हैं जो स्वाद में मीठे होते हैं लेकिन हमारे शरीर को कैलोरी प्रदान नहीं करते हैं। ये हमारे शरीर से अपरिवर्तित अवस्था में उत्सर्जित हो जाते हैं। उदाहरणार्थ: सैकरीन, एस्पार्टेम, सुक्रोलोस आदि। 


18. मधुमेह के रोगियों के लिए मिठाई बनाने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले मधुरक का क्या नाम है? 

उत्तर: सैकरीन।


19. ऐलिटेम को कृत्रिम मधुरक की तरह उपयोग में लाने पर क्या समस्याएँ होती हैं? 

उत्तर: ऐलिटेम उच्च क्षमता का कृत्रिम मधुरक है इसलिए इसका प्रयोग करने पर भोजन की मिठास को नियंत्रित करना कठिन होता है। 


20. साबुनों की अपेक्षा संश्लेषित अपमार्जक किस प्रकार श्रेष्ठ हैं? 

उत्तर: अपमार्जक का प्रयोग मृदु तथा कठोर जल दोनों में किया जा सकता है क्योंकि ये कठोर जल में भी झाग देते हैं। इसका कारण यह है कि सल्फोनिक अम्ल तथा इनके कैल्सियम तथा मैग्नीशियम लवण जल में विलेय होते हैं जबकि वसीय अम्ल तथा इनके कैल्सियम और मैग्नीशियम लवण अविलेय होते हैं। 


21. निम्नलिखित शब्दों को उपयुक्त उदाहरणों द्वारा समझाइए 

(क) धनात्मक अपमार्जक 

उत्तर: धनात्मक अपमार्जक ऐमीनों के ऐसीटेट, क्लोराइड या ब्रोमाइड ऋणायनों के साथ बने चतुष्क लवण होते हैं। उदाहरणार्थ सेटिल ट्राइमेथिल अमोनियम क्लोराइड। 


(ख) ऋणात्मक अपमार्जक 

उत्तर: ऋणात्मक अपमार्जक लम्बी श्रृंखला वाले ऐल्कोहॉलों अथवा हाइड्रोकार्बनों के सल्फोनेटित व्युत्पन्न होते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं 


(i) सोडियम ऐल्किल सल्फेट:

उदाहरणार्थ: सोडियम लॉरिल सल्फेट, C11H23CH2OSO3Na. 


(ii) सोडियम ऐल्किल बेन्जीन सल्फेट: सर्वाधिक प्रयोग किया जाने वाला घरेलू अपमार्जक सोडियम-4-(-1-डोडेसिल) बेन्जीन सल्फोनेट (SDS) हैं। 


Showing sodium alkyl benzene sulfate


सोडियम-4-(-1-डोडेसिल) बेन्जीन सल्फोनेट


(ग) अनायनिक अपमार्जक:

उत्तर: अनायनिक अपमार्जक, उच्च आण्विक द्रव्यमान वाले ऐल्कोहॉलों के साथ वसा अम्लों के एस्टरे होते हैं।

उदाहरणार्थ: पॉलिएथिलीन ग्लाइकॉल स्टिऐरेट CH3(CH2)6 COO(CH2CH2O)nCH2CH2OH


22. जैव-निम्नीकृत होने वाले और जैव-निम्नीकृत न होने वाले अपमार्जक क्या हैं? प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए। 

उत्तर: जैव-अपघट्य (निम्नीकृत) अपमार्जक सीधी हाइड्रोकार्बन शृंखलायुक्त होते हैं। ये अपमार्जक जीवाणुओं द्वारा नष्ट हो जाते हैं। जैव-अनपघट्य (अनिम्नीकृत) अपमार्जक शाखित हाइड्रोकार्बन श्रृंखलायुक्त होते हैं। ये अपमार्जक जीवाणुओं द्वारा नष्ट नहीं होते हैं। अनपघट्य अपमार्जक प्रदूषण का स्रोत होते हैं।

उदाहरणार्थ: 

जैव अपघट्य अपमार्जक: सोडियम लॉरिल सल्फेट 

अनपघट्य अपमार्जक: सोडियम 4 – (1, 3, 5, 7 – टेट्रामेथिलऑक्टिल) बेन्जीनसल्फोनेट।


23. साबुन कठोर जल में कार्य क्यों नहीं करता हैं? 

उत्तर: कठोर जल में कैल्सियम और मैग्नीशियम के लवण होते हैं। साबुन को कठोर जल में डालने पर साबुन कैल्सियम और मैग्नीशियम साबुन के रूप में अवक्षेपित हो जाते हैं। ये साबुन अविलेय होने के कारण कपड़ों पर चिपचिपे पदार्थ के रूप में चिपक जाते हैं। 


24. क्या आप साबुन तथा संश्लेषित अपमार्जकों का प्रयोग जल की कठोरता जानने के लिए कर सकते हैं? 

उत्तर: साबुन कठोर जल में अविलेय कैल्सियम तथा मैग्नीशियम साबुनों के रूप में अवक्षेपित हो जाते हैं, लेकिन अपमार्जक नहीं। इसलिए साबुन का प्रयोग जल की कठोरता जानने के लिए किया जा सकता है, अपमार्जकों का नहीं। 


25. साबुन की शोधन क्रिया समझाइए। 

उत्तर: साबुन की शोधन क्रिया:

साबुन का अणु दो भागों का बना होता है। साबुन के अणु का एक भाग तो लम्बी हाइड्रोकार्बन श्रृंखला होती है जो अनायनिक होती है तथा साबुन के अणु का दूसरा भाग छोटा कार्बोक्सिलिक समूह (COONa+) होता है जो आयनिक होता है। साबुन के अणु को चित्र द्वारा दर्शाया जाता है जिसमें टेढ़ी-मेढ़ी लम्बी रेखा तो हाइड्रोकार्बन श्रृंखला को निरूपित करती है, जबकि काला गोर्लीय भाग आयनिक समूह (COO) को निरूपित करता है। 


Showing soap molecule


साबुन के अणु का एक भाग तो            साबुन के अणु का आयनिक

लम्बी हाइड्रोकार्बन श्रृंखला मैल और         भाग जो जल की तरफ 

चिकनाई के साथ के साथ जुड़ी होती है।                   आकर्षित होता है

                               साबुन के अणु

साबुन के अणु का हाइड्रोकार्बन श्रृंखला वाला भाग जल को प्रतिकर्षित करने वाला होता है (या जलविरोधी होता है), परन्तु वह धूल तथा चिकनाई जैसे मैल के कार्बनिक कणों को अपने साथ जोड़ लेता है। इसलिए मैले कपड़ों की सतह पर उपस्थित धूल तथा चिकनाई के कण साबुन के अणु के हाइड्रोकार्बन वाले भाग से जुड़ जाते हैं। साबुन के अणु का आयनिक भाग (COO)जलस्नेही होता है जो जल के अणुओं की ओर आकर्षित होता है और अपने हाइड्रोकार्बन भाग में चिपके धूल तथा चिकनाई के कणों को अपने साथ खींचकर जल में ले आता है। इस प्रकार मैले कपड़े की सतह पर लगे धूल तथा चिकनाई के सारे कण साबुन के अणुओं के साथ लगकर जल में आ जाते हैं तथा मैला कपड़ा साफ हो जाता है। 


Showing the refining action of soap

       

साबुन की कार्य-विधि

जब साबुन को जल में घोलते हैं तो वह मिसेल  बनाता है:

(क) इस मिसेल में साबुन के अणु अरीय ढंग से व्यवस्थित होते हैं जिसमें हाइड्रोकार्बन श्रृंखला वाला भाग केन्द्र की ओर होता है। तथा जल को आकर्षित करने वाला कार्बोक्सिलिक भाग बाहर की ओर रहता है जैसा कि (ख) में दिखाया गया है। जब साबुन के पानी में धूल तथा चिकनाई लगा मैला कपड़ा डालते हैं तो मिसेलों के हाइड्रोकार्बन श्रृंखलाओं वाले सिरे मैले कपड़े की सतह पर उपस्थित धूल तथा चिकनाई के कणों के साथ जुड़ जाते हैं तथा उन्हें अपने बीच फंसा लेते हैं। इसके बाद मिसेलों के बाहर की ओर वाले आयनिक सिरे जल के अणुओं की ओर आकर्षित होते हैं जिससे हाइड्रोकार्बन वाले सिरों में फँसे मैल के कण कपड़े की सतह से खिंचकर जल में आ जाते हैं तथा कपड़ा साफ हो जाता है। साबुन द्वारा चिकनाई तथा धूल को पृथक् करने के प्रक्रम को निम्नांकित चित्र द्वारा दर्शाया गया है: 


Denoting the process of lubricating and separating dust by soap


साबुन और चिकनाई  का पृथक्करण


26. यदि जल में कैल्सियम हाइड्रोजनकार्बोनेट घुला हो तो आप कपड़े धोने के लिए साबुन एवं संश्लेषित अपमार्जकों में से किसका प्रयोग करेंगे? 

उत्तर: कैल्सियम बाइकार्बोनेट जले को कठोर बनाता है, अतएव साबुन इस जल में अवक्षेपित हो जाएगा। इसके विपरीत, अपमार्जक के कैल्सियम लवण जल में विलेय होते हैं। अत: संश्लेषित अपमार्जकों का प्रयोग , कठोर जल में कपड़े धोने के लिए किया जाता है। 


27. निम्नलिखित यौगिकों में जलरागी एवं जलविरागी भाग दर्शाइए

(i) CH3(CH2)10CH2-OSO3-Na

(ii) CH3(CH2)15-N+(CH3)3Br-

(iii) CH3(CH2)16-COO(CH2CH2O)nCH2CH2OH

उत्तर:

\[(i)\underbrace{C{{H}_{3}}{{(C{{H}_{2}})}_{10}}C{{H}_{2}}^{-}}_{~LYOPHOBIC}\underbrace{OS{{O}_{3}}^{-}N{{a}^{+}}}_{LYOPHILLIC}\]

          जलविरागी       जलरागी

\[(ii)\underbrace{C{{H}_{3}}{{(C{{H}_{2}})}_{15}}{{N}^{+}}}_{~LYOPHOBIC}\underbrace{{{(C{{H}_{3}})}_{3}}B{{r}^{-}}}_{LYOPHILLIC}\] 

        जलविरागी       जलरागी

\[(iii)\underbrace{C{{H}_{3}}{{(C{{H}_{2}})}_{16}}}_{Lyophobic}\underbrace{COO(C{{H}_{2}}C{{H}_{2}}O)nC{{H}_{2}}C{{H}_{2}}OH}_{Lyophilic}\] 

        जलविरागी                       जलरागी


NCERT Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 16 Chemistry in Everyday life in Hindi

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