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NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 - In Hindi

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Last updated date: 26th Apr 2024
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NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 Environmental Issues in Hindi Mediem

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Class:

NCERT Solutions for Class 12

Subject:

Class 12 Biology

Chapter Name:

Chapter 16 - Environmental Issues

Content-Type:

Text, Videos, Images and PDF Format

Academic Year:

2024-25

Medium:

English and Hindi

Available Materials:

  • Chapter Wise

  • Exercise Wise

Other Materials

  • Important Questions

  • Revision Notes



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Access NCERT Solutions for Class 12 Biology Chapter 16 - पर्यावरण के मुद्दे

1. घरेलू वाहित मल के विभिन्न घटक क्या हैं ? वाहितमल के नदी में विसर्जन से होने वाले प्रभावों की चर्चा करें।

उत्तर: घरेलू वाहित मल मुख्य रूप से जैव निम्नीकरणीय कार्बनिक पदार्थ होते हैं , जिनका अपघटन आसानी से होता है। इसका परिणाम सुपोषण होता है। घरेलू वाहित मल के विभिन्न घटक निम्नलिखित हैं –

1. निलंबित ठोस – जैसे- बालू, गाद और चिकनी मिट्टी।

2. कोलॉइडी पदार्थ – जैसे- मल पदार्थ, जीवाणु, वस्त्र और कागज के रेशे।

3. विलीन पदार्थ जैसे – पोषक पदार्थ, नाइट्रेट, अमोनिया, फॉस्फेट, सोडियम, कैल्शियम आदि।

वाहितमल के नदी में विसर्जन से होने वाले प्रभाव इस प्रकार हैं –

  • अभिवाही जलाशय में जैव पदार्थों के जैव निम्नीकरण से जुड़े सूक्ष्मजीव ऑक्सीजन की काफी मात्रा का उपयोग करते हैं। वाहित मल विसर्जन स्थल पर भी अनुप्रवाह जल में घुली ऑक्सीजन की मात्रा में तेजी से गिरावट आती है और इसके कारण मछलियों तथा जलीय जीवों की मृत्यु दर में वृद्धि हो जाती है।

  • जलाशयों में काफी मात्रा में पोषकों की उपस्थिति के कारण प्लवकीय शैवाल की अतिशय वृद्धि होती है, इसे शैवाल प्रस्फुटन कहा जाता है। शैवाल प्रस्फुटन के कारण जल की गुणवत्ता घट जाती है और मछलियां मर जाती हैं। कुछ प्रस्फुटन कारी शैवाल मनुष्य और जानवरों के लिए अत्यधिक विषैले होते हैं।

  • वाटर हायसिंथ पादप जो विश्व के सबसे अधिक समस्या उत्पन्न करने वाले जलीय खरपतवार हैं और उन्हें बंगाल का आतंक भी कहा जाता है, पादप सुपोषी जलाशयों में काफी वृद्धि करते हैं और इसकी पारितंत्रीय गति को असन्तुलित कर देते हैं।

  • हमारे घरों के साथ-साथ अस्पतालों के वाहितमल में बहुत से अवांछित रोगजनक सूक्ष्मजीव हो सकते हैं और उचित उपचार के बिना इनको जल में विसर्जित करने से गंभीर रोग, जैसे- पेचिश, टाइफाइड, पीलिया, हैजा आदि हो सकते हैं।


2. आप अपने घर, विद्यालय या अपने अन्य स्थानों के भ्रमण के दौरान जो अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं, उनकी सूची बनाएं। क्या आप उन्हें आसानी से कम कर सकते हैं ? कौन से ऐसे अपशिष्ट हैं जिनको कम करना कठिन या असम्भव होगा?

उत्तर: अपशिष्टों की सूची निम्नलिखित दिए गए हैं : –

1. कागज, कपड़ा, पॉलीथिन बैग

2. डिस्पोजेबल क्रॉकरी

3. एलुमिनियम पन्नी, टिन का डिब्बा

4. शीशा।

  • हाँ, कुछ अपशिष्टों को हम कम कर सकते हैं | अपशिष्ट जिन्हें कम किया जा सकता है –

कागज, कपड़ा - यह कागज और कपड़ों को मिट्टी में आसानी से नष्ट किया जा सकता है।

  • कुछ अपशिष्ट जिन्हें कम नहीं किया जा सकता है –

एलुमिनियम पन्नी, टिन का डिब्बा, डिस्पोजेबल क्रॉकरी, पॉलीथिन बैग, शीशा। ये अपशिष्ट हानिकारक विषाक्त पदार्थों को छोड़ते हैं और पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं इसलिए इन्हें पुनर्नवीनीकरण किया जा सकता है।


3. वैश्विक उष्णता में वृद्धि के कारणों और प्रभावों की चर्चा करें। वैश्विक उष्णता वृद्धि को नियंत्रित करने वाले उपाय क्या हैं?

उत्तर: वैश्विक उष्णता में वृद्धि के कारण – ग्रीन हाउस गैसों के स्तर में वृद्धि के कारण पृथ्वी की सतह का ताप काफी बढ़ जाता है जिसके कारण विश्वव्यापी उष्णता होती है। गत शताब्दी में पृथ्वी के तापमान में 0.6°C वृद्धि हुई है। इसमें से अधिकतर वृद्धि पिछले तीन दशकों में ही हुई है। एक सुझाव के अनुसार सन् 2100 तक विश्व का तापमान 1.40 – 5.8°C बढ़ सकता है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि तापमान में इस वृद्धि से पर्यावरण में हानिकारक परिवर्तन होते हैं जिसके परिणामस्वरूप विचित्र जलवायु-परिवर्तन होते हैं। इसके फलस्वरूप ध्रुवीय हिम टोपियों और अन्य जगहों, जैसे हिमालय की हिम चोटियों का पिघलना बढ़ जाता है। कई वर्षों बाद इससे समुद्र तल का स्तर बढ़ेगा जो कई समुद्र तटीय क्षेत्रों को जलमग्न कर देगा।
वैश्विक उष्णता के निम्नलिखित प्रभाव हो सकते हैं –

1. अन्न उत्पादन कम होगा

2. भारत में होने वाली मौसमी वर्षा पूर्ण रूप से बंद हो सकती है

3. मरुभूमि का क्षेत्र बढ़ सकता है

4. एक-तिहाई वैश्विक वन समाप्त हो सकते हैं

5. भीषण आँधी, चक्रवात तथा बाढ़ की संभावना बढ़ जाएगी

6. 2050 ई० तक एक मिलियन से अधिक पादपों एवं जन्तु की जातियाँ समाप्त हो जाएँगी।

वैश्विक उष्णता को निम्नलिखित उपायों द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है –

1. जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को कम करना

2. ऊर्जा दक्षता में सुधार करना

3. वनोन्मूलन को कम करना

4. मनुष्य की बढ़ती हुई जनसंख्या को कम करना

5. जानवरों की विलुप्त हो रही प्रजातियों को संरक्षित करना

6. वनों का विस्तार करना

7. वृक्षारोपण को बढ़ावा देना।

 

4. कॉलम अ और ब में दिए गए मदों का मिलान करें –

    कॉलम अ   

    कॉलम ब

(क) उत्प्रेरक परिवर्तक

1. कणिकीय पदार्थ

(ख) स्थिर वैद्युत अवक्षेपित्र

2. कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड


(ग) कर्णमफ

3. उच्च शोर स्तर

(घ) लैंडफिल

4. ठोस अपशिष्ट


उत्तर:

(क) - 2

(ख) - 1

(ग) -  3

(घ) -  4


5. निम्नलिखित पर आलोचनात्मक टिप्पणी लिखें –

(i) सुपोषण (Eutrophication)

(ii) जैव आवर्धन (Biological Magnification)

(iii) भौमजल (भूजल) का अवक्षय और उसकी पुनःपूर्ति के तरीके।

उत्तर: निम्नलिखित दिए गए पर आलोचनात्मक टिप्पणी :-
(i) सुपोषण (Eutrophication) – अकार्बनिक फॉस्फेट एवं नाइट्रेट के जलाशयों में एकत्र होने की क्रिया को सुपोषण कहते हैं। सुपोषण झील का प्राकृतिक काल-प्रभावन दर्शाता है, यानी झील अधिक उम्र की हो जाती है। यह इसके जल की जैव समृद्धि के कारण होता है। तरुण झील का जल शीतल और स्वच्छ होता है। समय के साथ-साथ इसमें सरिता के जल के साथ पोषक तत्त्व, जैसे-नाइट्रोजन और फास्फोरस आते रहते हैं जिसके कारण जलीय जीवों में वृद्धि होती रहती है। जैसे-जैसे झील की उर्वरता बढ़ती है वैसे - वैसे पादप और प्राणी बढ़ने लगते हैं। जीवों की मृत्यु होने पर कार्बनिक अवशेष झील के तल में बैठने लगते हैं। सैकड़ों वर्षों में इसमें जैसे-जैसे सिल्ट एवं जैव मलबे का ढेर लगता है वैसे-वैसे झील उथली और गर्म होती जाती है। उथली झील में कच्छ (marsh) पादप उग आते हैं और मूल झील बेसिन उनसे भर जाता है। मनुष्य के क्रियाकलापों के कारण सुपोषण की क्रिया में तेजी आती है। इस प्रक्रिया को त्वरित सुपोषण कहते हैं। इस प्रकार झील वास्तव में घुट कर मर जाती है और अंत में यह भूमि में परिवर्तित हो जाती है।


(ii) जैव आवर्धन (Biological Magnification) – जैव आवर्धन का तात्पर्य है, क्रमिक पोषण स्तर पर आविषाक्त की सांद्रता में वृद्धि का होना। इसका कारण है जीव द्वारा संगृहीत आविषालु पदार्थ उपापचयी या उत्सर्जित नहीं हो सकता और इस प्रकार यह अगले उच्चतर पोषण स्तर पर पहुँच जाता है। ये पदार्थ खाद्य श्रृंखला के विभिन्न पोषी स्तरों (trophic levels) के जीवों में धीरे-धीरे संचित होते रहते हैं। खाद्य श्रृंखला में इन्हें सबसे पहले पौधों द्वारा प्राप्त किया जाता है। पौधों से इन पदार्थों को उपभोक्ताओं द्वारा प्राप्त किया जाता है। उद्योगों के अपशिष्ट जल में प्रायः विद्यमान कुछ विषैले पदार्थों में जलीय खाद्य श्रृंखला जैव आवर्धन कर सकते हैं।

यह परिघटना पारा एवं D.D.T. के लिए सुविदित है। क्रमिक पोषण स्तरों पर D.D.T. की सान्द्रता बढ़ जाती है। यदि जल में यह सान्द्रता 0.003 ppb से आरम्भ होती है तो अंत में जैव आवर्धन के द्वारा मत्स्यभक्षी पक्षियों में बढ़कर 25 ppm हो जाती है। पक्षियों में D.D.T. की उच्च सान्द्रता कैल्शियम उपापचय को नुकसान पहुंचाता है जिसके कारण अंड कवच पतला हो जाता है और यह समय से पहले फट जाता है जिसके कारण पक्षी-समष्टि की संख्या में कमी हो जाती है।


(iii) भौमजल का अवक्षय और उसकी पुनः पूर्ति के तरीके (Groundwater Depletion and Ways for its Replenishment) – भूमिगत जल पीने के लिए अधिक शुद्ध एवं सुरक्षित है। औद्योगिक शहरों में भूमिगत जल प्रदूषित होता जा रहा है। अपशिष्ट तथा औद्योगिक अपशिष्ट बहाव जमीन पर बहता रहता है जो कि भूमिगत जल प्रदूषण के साधारण स्रोत हैं। उर्वरक तथा पीड़कनाशी, जिनका उपयोग खेतों में किया जाता है, भी प्रदूषक का कार्य करते हैं। ये वर्षा-जल के साथ निकट के जलाशयों में एवं अन्तत: भौमजल में मिल जाते हैं। अस्वीकृत कूड़े के ढेर, सेप्टिक टैंक एवं सीवेज गड्ढे से सीवेज के गिरने के कारण भी भूमिगत जल प्रदूषित होता है।

वाहितमल जले एवं औद्योगिक अपशिष्टों को जलाशयों में छोड़ने से पहले उपचारित करना चाहिए जिससे भूमिगत जल प्रदूषित होने से बच सकता है।


6. अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन छिद्र क्यों बनते हैं ? पराबैंगनी विकिरण के बढ़ने से हमारे ऊपर किस प्रकार प्रभाव पड़ेंगे?

उत्तर: हालांकि ओजोन अवक्षय व्यापक रूप से होता है, लेकिन इसका असर अंटार्कटिक क्षेत्र में खासकर देखा गया है। यहाँ जगह-जगह पर ओजोन परत में इतनी कमी पड़ जाती है कि छिद्र को आभास होने लगता है और इसे ओजोन छिद्र (Ozone hole) की संज्ञा दी जाती है। कुछ सन्धियाँ, झागदार शेविंग क्रीम, कीटनाशक, गन्धहारक आदि डिब्बों में आते हैं और फुहारा या झाग के रूप में निकलते हैं। इन्हें एरोसोल कहते हैं। इसके उपयोग से वाष्पशील CFC वायुमण्डल में पहुँच कर ओजोन स्तर को नष्ट करते हैं। CFC का व्यापक उपयोग एयरकण्डीशनरों, रेफ्रिजरेटरों, शीतलकों, जेट इंजनों, अग्निशामक उपकरणों, गद्देदार फोम आदि में होता है। ज्वालामुखी, रासायनिक उर्वरक, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, सवाना तथा अन्य वन-वृक्षों के जलने से ओजोन की परत को क्षति होती है। फ्रिऑन सबसे अधिक घातक क्लोरोफ्लोरोकार्बन है जो ओजोन से प्रतिक्रिया कर उसका अवक्षय करता है।

पराबैंगनी - बी की अपेक्षा छोटे तरंगदैर्ध्य युक्त पराबैंगनी विकिरण पृथ्वी के वायुमण्डल द्वारा लगभग पूरा का पूरा अवशोषित हो जाता है। बशर्ते कि ओजोन स्तर ज्यों-का-त्यों रहे लेकिन पराबैंगनी-बी DNA को क्षतिग्रस्त करता है और उत्परिवर्तन को बढ़ाता है। इसके कारण त्वचा में बुढ़ापे के लक्षण दिखते हैं। इसके विविध प्रकार के त्वचा कैंसर हो सकते हैं। इससे हमारी आँखों में कॉर्निया का शोथ हो जाता है जिसे हिम अन्धता, मोतियाबिंद आदि कहा जाता है।


7. वनों के संरक्षण और सुरक्षा में महिलाओं और समुदायों की भूमिका की चर्चा करें।

उत्तर: भारत में वन संरक्षण का एक लम्बा इतिहास है। जोधपुर (राजस्थान) के राजा ने 1731 ई० में अपने महल के निर्माण के लिए वृक्षों को काटने का आदेश दिया था। जिस वन क्षेत्र के वृक्षों को काटना था उसके आस-पास कुछ बिश्नोई परिवार रहते थे। इस परिवार की अमृता नामक महिला ने राजा के आदेश का विरोध किया एवं वृक्ष से चिपककर खड़ी हो गई। उसका कहना था कि वृक्ष हमारी जान है। उसके बिना हमारा जिंदा रहना असम्भव है। इसे काटने के लिए पहले आपको हमें काटना होगा। राजा के लोगों ने पेड़ के साथ-साथ महिला एवं उसके बाद उसकी तीन बेटियों तथा बिश्नोई परिवार के सैकड़ों लोगों को वृक्ष के साथ कटवा दिया। भारत सरकार ने इस साहसी महिला, जिसने पर्यावरण की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बलि दे दी, उनके सम्मान में अमृता देवी बिश्नोई वन्यजीव संरक्षण पुरस्कार देना हाल में शुरू किया है।

चिपको आन्दोलन के प्रवर्तक डॉ० सुन्दरलाल बहुगुणा के नाम से ही वन-संरक्षण की संवेदना होने लगती है। 1974 ई० में हिमालय के गढ़वाल में जब ठेकेदारों द्वारा वृक्षों को काटने की प्रक्रिया आरम्भ हुई तो इससे बचने के लिए स्थानीय महिलाओं ने अदम्य साहस का परिचय दिया। वे वृक्षों से चिपकी रहीं एवं वृक्षों को काटे जाने से रोकने में सफल रहीं। इसी प्रयास ने आन्दोलन का रूप ले लिया एवं ‘चिपको आन्दोलन’ के रूप में विश्व विख्यात हुआ।


8. पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए एक व्यक्ति के रूप में आप क्या उपाय करेंगे?

उत्तर: पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए हम एक व्यक्ति के रूप में निम्नलिखित उपाय करेंगे –

1. सीसा रहित एवं सल्फर रहित पेट्रोल के उपयोग के साथ-साथ इंजन से कम-से-कम धुआँ उत्सर्जित हो, इस पर ध्यान रखेंगे।

2. बिजली या बैटरी से चलती वाहनों के प्रयोग पर बल देंगे।

3. उद्योगों की चिमनी हवा में काफी ऊपर हो एवं उसमें फिल्टर लगा होना चाहिए, इस संदर्भ में लोगों के माध्यम से प्रयास करेंगे।

4. उद्योगों एवं परिष्करणशालाओं को आबादी से दूर स्थापित करवाने का प्रयास करेंगे।

5. वनरोपण के प्रति लोगों को जागरूक एवं प्रोत्साहित करेंगे।

6. प्रदूषण से होने वाली बीमारियों तथा हानिकारक प्रभावों के बारे में आम लोगों को जानकारी देंगे।

7. जीवाश्म ईंधनों का प्रयोग कम-से-कम करेंगे।

8. जनसंख्या वृद्धि से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को बताएँगे।

9. धूम्रपान से होने वाली हानियों के बारे में लोगों को सलाह देंगे।

10. मोटर वाहन चलाते समय हॉर्न का प्रयोग कम-से-कम हो, इस बात का ध्यान रखेंगे।

11. रेडियो, टी०वी०, म्यूजिक सिस्टम आदि का प्रयोग करते समय इस बात का ध्यान रखेंगे कि आवाज बहुत धीमी हो।


9. निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में चर्चा करें –

(क) रेडियो सक्रिय अपशिष्ट

(ख) पुराने बेकार जहाज और ई- अपशिष्ट

(ग) नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट

उत्तर: निम्नलिखित के बारे में :-

(क) रेडियो सक्रिय अपशिष्ट (Radioactive Wastes) – न्यूक्लियर रिएक्टर से निकलने वाला विकिरण जीवों के लिए बेहद नुकसानदायक होता है क्योंकि इसके कारण अति उच्च दर से विकिरण उत्परिवर्तन होते हैं। न्यूक्लियर अपशिष्ट विकिरण की ज्यादा मात्रा घातक यानी जानलेवा होती है लेकिन कम मात्रा कई विकार उत्पन्न करती है। इसका सबसे अधिक बार-बार होने वाला विकार कैंसर है। इसलिए न्यूक्लियर अपशिष्ट अत्यंत प्रभावकारी प्रदूषक है।

रेडियो सक्रिय अपशिष्ट का भण्डारण कवचित पात्रों में चट्टानों के नीचे लगभग 500 मीटर की गहराई में पृथ्वी में गाड़कर करना चाहिए। नाभिकीय संयंत्र से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों जिनमें विकिरण कम हो उसे सीवरेज में छोड़ा जा सकता है। अधिक विकिरण वाले अपशिष्टों का विशेष उपचार, संचय एवं निपटारा किया जाता है।


(ख) पुराने बेकार जहाज और ई-अपशिष्ट (Defunct Ships and E-Wastes) – पुराने बेकार जहाज एक प्रकार के ठोस अपशिष्ट हैं जिनका उचित निपटारा आवश्यक है। विकासशील देशों में इसे तोड़कर धातु को अलग किया जाता है। इसमें सीसा, मरकरी (पारा), ऐस्बेस्टोस, टिन आदि पाए जाते हैं जो हानिकारक होते हैं।

ऐसे कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक सामान जो मरम्मत के लायक नहीं रह जाते हैं उन्हें इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट (E-wastes) कहते हैं। ई-अपशिष्ट को लैंडफिल्स में गाड़ दिया जाता है या जलाकर भस्म कर दिया जाता है। विकसित देशों में उत्पादित ई-अपशिष्ट का आधे से अधिक भाग विकासशील देशों, खासकर चीन, भारत तथा पाकिस्तान में निर्यात किया जाता है जिससे विकासशील देशों में इसकी समस्या बहुत बढ़ जाती है। इसमें मौजूद वैसे तत्व या धातु जिनका पुनर्चक्रण किया जा सकता है जैसे-लोहा, निकेल, तांबा आदि का पुनर्चक्रण कर पुनः उपयोग किया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया में विकसित देशों की तरह वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करना चाहिए ताकि, इससे जुड़े कर्मियों पर इनका हानिकारक प्रभाव कम-से-कम हो।


(ग) नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट (Municipal Solid Wastes) – इसके अन्तर्गत घरों, कार्यालयों, भंडारों, विद्यालयों आदि में रद्दी में फेंकी गई चीजें आती हैं जो नगरपालिका द्वारा इकट्ठी की जाती हैं और उनका निपटारा किया जाता है। इसमें आमतौर पर कागज, खाद्य अपशिष्ट, काँच, धातु, रबर, चमड़ा, वस्त्र आदि होते हैं। इनको जलाने से अपशिष्ट के आयतन में कमी आती है। खुले में इसे फेंकने से यह चूहों और मक्खियों के लिए प्रजनन स्थल का कार्य करता है। इसका निपटारा सैनिटरी लैंडफिल्स के माध्यम से भी किया जाता है। इन लैंडफिल्स से रसायनों के रिसाव का खतरा है जिससे कि भौम जल संसाधन प्रदूषित हो जाते हैं। खासकर महानगरों में कचरा इतना अधिक होने लगता है कि ये स्थल भी भर जाते हैं। इन सब का मात्र एक हल है कि पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति हम सभी को अधिक संवेदनशील होना चाहिए।


10. दिल्ली में वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के लिए क्या प्रयास किए गए ? क्या दिल्ली में वायु की गुणवत्ता में सुधार हुआ ?

उत्तर: वाहनों की संख्या काफी अधिक होने के कारण दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर देश में सबसे अधिक है। दिल्ली में वाहनों से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए हैं –

1. सभी सरकारी वाहनों यानी बसों में डीजल के स्थान पर संपीड़ित प्राकृतिक गैस (सी०एन०जी) का प्रयोग किया जाए।

2. वर्ष 2002 के अन्त तक दिल्ली की सभी बसों को सी०एन०जी० में परिवर्तित कर दिया गया ।

3. पुरानी गाड़ियों की धीरे-धीरे हटा लिया जाए।

4. सीसा रहित पेट्रोल या डीजल का प्रयोग किया जाए।

5. कम गंधक (सल्फर) युक्त पेट्रोल या डीजल का प्रयोग किया जाए।

6. वाहनों में उत्प्रेरक परिवर्तकों का प्रयोग किया जाए।

7. वाहनों के लिए यूरो- II मानक अनिवार्य कर दिया जाए।

दिल्ली में किए गए इन प्रयासों के कारण वायु की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है। एक आकलन के अनुसार सन् 1997 – 2005 ई० तक दिल्ली में CO और SO2 के स्तर में काफी गिरावट आई है।


11. निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में चर्चा करें –

(क) ग्रीनहाउस गैस

(ख) उत्प्रेरक परिवर्तक

(ग) पराबैंगनी-बी

उत्तर: निम्नलिखित के बारे में :-

(क) ग्रीन हाउस गैसेस (Greenhouse Gases) – कार्बन-डाइऑक्साइड, मीथेन, जल वाष्प, नाइट्रस ऑक्साइड तथा क्लोरो फ्लोरो कार्बन को ग्रीन हाउस गैस कहा जाता है।

ग्रीन हाउस गैसों के स्तर में वृद्धि के कारण पृथ्वी की सतह का ताप काफी बढ़ जाता है जिसके कारण विश्वव्यापी उष्णता होती है। इन गैसों के कारण ही ग्रीन हाउस प्रभाव पड़ते हैं। ग्रीन हाउस प्रभाव प्राकृतिक रूप से होने वाली परिघटना है जिसके कारण पृथ्वी की सतह पर वायुमंडल गर्म हो जाता है। पृथ्वी का तापमान सीमा से अधिक बढ़ने पर ध्रुवीय हिम टोप के पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ने तथा बाढ़ आने की सम्भावना बढ़ जाती है। आने वाली शताब्दी में पृथ्वी का तापमान 0.6°C तक बढ़ जाएगा। औद्योगिक विकास, जनसंख्या वृद्धि एवं वृक्षों की निरंतर हो रही कमी से वायुमंडल में CO2 की मात्रा 0.03% से बढ़कर 0.04% हो गई है। अगर यही क्रम जारी रहा तो बहुत सारे द्वीप एवं समुद्री तटों पर बसे शहर समुद्र में समा जाएँगे।


(ख) उत्प्रेरक परिवर्तक (Catalytic Converter) – इसमें कीमती धातु, प्लैटिनम-पैलेडियम और रोडियम लगे होते हैं जो उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। ये परिवर्तन स्वचालित वाहनों में लगे होते हैं जो विषैली गैसों के उत्सर्जन को कम करते हैं। जैसे ही निर्वात उत्प्रेरक परिवर्तक से होकर गुजरता है अग्ध हाइड्रोकार्बन डाइऑक्साइड और जल में बदल जाता है तथा कार्बन मोनोऑक्साइड एवं नाइट्रिक ऑक्साइड क्रमशः कार्बन डाइऑक्साइड एवं नाइट्रोजन गैस में परिवर्तित हो जाता है। उत्प्रेरक परिवर्तक युक्त मोटर वाहनों में सीसा रहित पेट्रोल का उपयोग करना चाहिए क्योंकि सीसा युक्त पेट्रोल उत्प्रेरक को अक्रिय कर देता है।


(ग) पराबैंगनी-बी (Ultraviolet-B) – यह DNA को क्षतिग्रस्त करता और उत्परिवर्तन को बढ़ाता है। इससे कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और विविध प्रकार के त्वचा कैंसर उत्पन्न होते हैं। हमारे आँख का स्वच्छ मंडल (कॉर्निया) पराबैंगनी-बी विकिरण का अवशोषण करता है। इसकी उच्च मात्रा के कारण कॉर्निया का शोथ हो जाता है, जिसे हिम अन्धता, मोतियाबिंद आदि कहा जाता है। इस प्रकार पराबैंगनी किरणें जीवों के लिए बेहद हानिकारक हैं।


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