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NCERT Solutions For Class 10 Hindi Chapter 3 Manushyata

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Access Vedantu's Class 10 Hindi Chapter 3 NCERT Solutions For Better Understanding

Ever thought about what it truly means to be human? These Manushyata Class 10 questions and answers explore this beautiful idea. This chapter helps you understand deep human values. Our Class 10 Hindi Chapter 3 NCERT Solutions make learning these concepts simple and clear.

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These solutions are prepared by subject experts at Vedantu. They help you complete homework on time and feel ready for exams. Parents looking for more resources can visit our NCERT Solutions Class 10 Hindi page for comprehensive support.

Every answer is explained in an easy-to-follow manner. Using these solutions will boost your confidence in the subject. You can download the free PDF of these solutions to study anytime, anywhere.

Access Vedantu's Class 10 Hindi Chapter 3 NCERT Solutions For Better Understanding

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

1.कवि ने कैसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है ? 

उत्तर : कवि ने ऐसी मृत्यु को सुमृत्यु कहा है जो मानवता की राह में एवं लोक हित कार्यों में परोपकार करते हुए प्राप्त होती है ,जिसके पश्चात भी मनुष्य को संसार में याद रखा जाता है। 


2.उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है?

उत्तर : उदार व्यक्ति अपने संस्कारों से परोपकारी होता है,जो कभी स्वप्न में को कोई गलत कम नहीं करता है और सभी से शांत चित होकर प्रेम से बात करता है। वह अपना जीवन समाज के दुखों को दूर करने में एवं दीनों का भला करने में लगा देता है। उदारता के स्वभाव वाला इंसान कभी किसी से भेदभाव नहीं रखता और सभी को एक बराबर समझता है। उदार व्यक्ति इस बात को भली - भांति जानता है कि वह यदि समाज का भला करेगा तो उसका भी भला हो जाएगा। 


3.कवि ने दधीचि कर्ण, आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर मनुष्यता के लिए क्या संदेश दिया है ?

उत्तर : कवि ने दधीचि, कर्ण आदि महान व्यक्तियों का उदाहरण देकर मनुष्यता के लिए यह बताने का प्रयास किया है कि परोपकार के लिए अपना सर्वस्व, यहाँ तक की अपने प्राण तक न्यौछावर करने को तैयार रहना चाहिए। यहाँ तक की दूसरों के हित के लिए अपने शरीर तक दान करने को तैयार रहना चाहिए। दधीचि ने मानवता की रक्षा के लिए अपनी अस्थियाँ एवं दानवीर कर्ण ने अपने कवच एवं कुंडल तक दान कर दिये। हमारा शरीर तो नश्वर हैं,उससे मोह रखना व्यर्थ है। परोपकार करना ही सच्ची मनुष्यता है और हमें यही करना चाहिए।


4. कवि ने किन पंक्तियों में यह व्यक्त है कि हमें अहंकार रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए? 

उत्तर: निम्नलिखित पंक्तियों में अहंकार रहित जीवन व्यतीत करने की बात कही गई है-

रहो न भूल के कभी, मदांध तुच्छ वित्त में।

सनाथ जान आपको, करो न गर्व चित्त में ॥ 


5. मनुष्य मात्र बंधु है' से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर: मनुष्य मात्र बंधु है ! इस बात से अर्थ है कि सभी मनुष्य आपस में भाई बंधु होते हैं क्योंकि सभी का पिता मात्र एक ईश्वर है। इसलिए सभी को प्रेम भाव से रहना चाहिए एवं एक दूसरे की स्वार्थ रहित होकर सहायता करनी चाहिए। इस धरती में कोई पराया नहीं है, सभी एक दूसरे के काम आएँ । 


6. कवि ने सबको एक होकर चलने की प्रेरणा क्यों दी है? 

उत्तर: कवि ने सबको एक साथ चलने की प्रेरणा इसलिए दी है क्योंकि सभी मनुष्य उस एक ही परमपिता परमेश्वर की संतान हैं इसलिए बंधुत्व के नाते हमें सभी को साथ लेकर चलना चाहिए क्योंकि समर्थ भाव भी यही है कि हम सबका कल्याण करते हुए अपना कल्याण करें। 


7. व्यक्ति को किस प्रकार का जीवन व्यतीत करना चाहिए? इस कविता के आधार पर लिखिए। 

उत्तर : व्यक्ति को परोपकार करके अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। साथ ही कठिन मार्ग पर एकता के साथ बढ़ना चाहिए। इस दौरान जो भी विपत्तियाँ आएँ, उन्हें मार्ग से हटाते हुए आगे बढ़ते जाना चाहिए। उदार हृदय बनकर अहंकार रहित मानवतावादी जीवन व्यतीत करना चाहिए। 


8.मनुष्यता कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है ? 

उत्तर : 'मनुष्यता' कविता के माध्यम से कवि यह संदेश देना चाहता है कि हमें अपना पूरा जीवन परोपकार में व्यतीत करना चाहिए। सच्चा मनुष्य दूसरों की भलाई के काम को सर्वोपरि मानता है। हमें मनुष्य- मनुष्य के बीच कोई अंतर नहीं करना चाहिए। हमें अपना हृदय उदार बनाना चाहिए। हमें धन के नशे  में अंधा नहीं बनना चाहिए। मानवता के धर्म को अपनाना चाहिए।


(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए |

1.सहानुभूति चाहिए, महाविभूति है यही

वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही। 

विरुद्धवाद बुद्ध का दया प्रवाह में बहा,

विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झुका रहा?

उत्तर : इन पंक्तियों के द्वारा कवि ने एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति की भावना को प्रकट किया है। इससे बढ़कर कोई अन्य धन नहीं है। यदि प्रेम, सहानुभूति, करुणा के भाव हो तो वह सारे संसार को जीत सकता है। वह सारे जगत में सम्मानित भी रहता है। महात्मा बुद्ध के विचारों का भी विरोध हुआ था परन्तु जब बुद्ध ने अपनी करुणा, प्रेम व दया का प्रवाह किया तो उनके सामने सब नतमस्तक हो गए। 


2. रहो न भूल के कभी मदांध तुच्छ वित्त में, 

सनाथ जान आपको करो न गर्व चित्त में। 

अनाथ कौन है यहाँ? त्रिलोकनाथ साथ हैं, 

दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं। 

उत्तर : कवि कहता है कि कभी भूलकर भी अपने थोड़े से धन के अहंकार में अंधे होकर स्वयं को सनाथ अर्थात् सक्षम मानकर अहंकार मत करो क्योंकि संसार में  अनाथ तो कोई नहीं है। इस संसार का स्वामी ईश्वर है जो सबके साथ है और ईश्वर तो दयालु दीनों और असहायों का सहारा है और उनके हाथ बहुत विशाल है अर्थात् वह सबकी सहायता करने में सक्षम है। प्रभु के रहते हुये भी जो व्याकुल रहता है वह बहुत ही भाग्यहीन है। सच्चा मनुष्य वह है जो दूसरे मनुष्य संग सत्कर्मों के लिए मरता है। 


3. चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए, 

विपत्ति, विघ्न जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए। 

घटे न हेलमेल हाँ, बढ़े न भिन्नता कभी, 

अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।

उत्तर : कवि कहता है कि अपने इच्छित मार्ग पर प्रसन्नतापूर्वक हंसते-खेलते चलो और रास्ते पर जो कठिनाई या बाधा पड़े उन्हें हटाते हुए आगे बढ़ जाओ। लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि हमारा आपसी तालमेल न कम हो और हमारे बीच भेदभाव न बढ़े। हम तर्क रहित होकर एक मार्ग पर सावधानीपूर्वक चलें और एक-दूसरे पर परोपकार करते हुए अर्थात् उद्धार करते हुए आगे बढ़े तभी हमारी समर्थता सिद्ध होगी अर्थात् हम तभी समर्थ माने जाएंगे।  जब हम केवल अपनी ही नहीं समस्त समाज की भी उन्नति करेंगे। सच्चा मनुष्य वही है जो दूसरों के लिए मरता है।


योग्यता विस्तार
प्रश्न 1. अपने अध्यापक की सहायता से रंतिदेव, दधीचि, कर्ण आदि पौराणिक पात्रों के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर- रंतिदेव, दधीचि, और कर्ण भारतीय पौराणिक कथाओं के प्रमुख पात्र हैं, जो अपनी उदारता, त्याग, और मानवीय गुणों के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ इनके बारे में संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है:


1. रंतिदेव:

  • रंतिदेव एक प्राचीन राजा थे, जो अपनी दया और उदारता के लिए विख्यात थे। उनके राज्य में एक समय ऐसा आया जब वे स्वयं भीषण गरीबी और अकाल का सामना कर रहे थे।

  • एक कथा के अनुसार, 48 दिनों के उपवास के बाद उन्हें कुछ भोजन और पानी मिला, लेकिन जब एक भूखा ब्राह्मण, एक भिखारी, और अंततः एक प्यासा कुत्ता उनसे सहायता मांगने आए, तो रंतिदेव ने अपना सारा भोजन और पानी दूसरों की सहायता के लिए दे दिया।

  • उनकी इस करुणा और निःस्वार्थता के कारण देवताओं ने उनकी परीक्षा ली और अंततः उन्हें आशीर्वाद दिया।


2. दधीचि:

  • महर्षि दधीचि एक ऋषि थे, जो अपने त्याग और बलिदान के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने देवताओं की सहायता के लिए अपनी हड्डियों का दान किया था।

  • जब असुरों से देवताओं की रक्षा के लिए कोई अस्त्र नहीं था, तब दधीचि ने अपनी हड्डियों का बलिदान किया, जिससे वज्र (इंद्र का अस्त्र) बनाया गया। इस वज्र से इंद्र ने असुरों के राजा वृत्रासुर का वध किया।


3. कर्ण:

  • कर्ण महाभारत के एक प्रमुख पात्र थे, जो अपनी दानशीलता और शौर्य के लिए प्रसिद्ध थे। वे कुंती के पुत्र थे, लेकिन सूतपुत्र के रूप में पाले गए।

  • कर्ण ने कभी भी किसी याचक को खाली हाथ नहीं लौटाया, चाहे वह स्वयं किसी कठिन परिस्थिति में क्यों न हो।

  • महाभारत के युद्ध से पहले भी, इंद्र ने उनसे कवच-कुंडल मांग लिया, जो उन्हें जन्म से प्राप्त थे। कर्ण ने इन्हें बिना किसी हिचकिचाहट के दान कर दिया, भले ही उन्हें यह ज्ञात था कि इससे उनकी सुरक्षा कम हो जाएगी।


प्रश्न 2. ‘परोपकार’ विषय पर आधारित दो कविताओं और दो दोहों का संकलन कीजिए। उन्हें कक्षा में सुनाइए।
उत्तर- यहाँ परोपकार (दूसरों की भलाई) पर आधारित दो कविताएँ और दो दोहे प्रस्तुत हैं:

कविता 1: परोपकार का महत्व

जीवन का सच्चा अर्थ वही, जो औरों के काम आ जाए। परोपकार में सुख मिलता है, जो दुख को हर ले जाए॥

दूसरों की भलाई के लिए, मनुष्य बना है धरती पर। अपना सुख त्याग कर देखो, मिलेगा जीवन में अमृत-भर॥

कविता 2: परोपकार की राह

जो करता है परोपकार, वह सच्चा मानव कहलाता है। उसके जीवन की ज्योत से, दूसरों का पथ जगमगाता है॥

दूसरों के आँसू पोंछने का, जब मन में उठता भाव। तभी समझो जीवन में, सच्चे सुख का हुआ प्रभाव॥


दोहे:

  1. "पर हित सरस सुभाव, कर ले जीवन सार।
    दूसरों के दुख हरे, वही सच्चा परोपकार।"

  2. "संत परोपकार की, करे सदैव बात।
    दूसरों के हित बने, वही सच्ची सौगात।"


परियोजना कार्य
प्रश्न 1. अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध’ की कविता ‘कर्मवीर’ तथा अन्य कविताओं को पढ़िए तथा कक्षा में सुनाइए।
उत्तर- अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ हिंदी साहित्य के प्रमुख कवियों में से एक हैं, जिनका योगदान विशेष रूप से खड़ी बोली हिंदी को समृद्ध बनाने में रहा है। उनकी कविताओं में राष्ट्रीयता, सामाजिक सरोकार और मानवता के संदेश प्रमुखता से मिलते हैं। उनकी कविता "कर्मवीर" कर्म और परिश्रम के महत्व पर प्रकाश डालती है।


"कर्मवीर" कविता का अंश:

इस कविता में हरिऔध जी कर्म करने की प्रेरणा देते हैं और जीवन में कर्तव्य को सर्वोपरि मानते हैं। यह संदेश देते हैं कि हमें निरंतर कर्म करते रहना चाहिए, चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों। भाग्य से अधिक कर्म को महत्व देने पर ही सफलता प्राप्त होती है।


अन्य कविताएँ:

"वे मोह-माया के बंधन में, अपने मन को उलझाते हैं।
जो कर्तव्य पथ से हटकर, केवल सुख के सपने देखते हैं॥
तू न निराश हो, मन को थाम, कर्तव्य पथ पर चलने दे।
तू कर्मवीर है, कर्म किए जा, बाकी भाग्य पर छोड़ने दे॥"


हरिऔध जी की अन्य कविताएँ भी प्रेरणादायक और जीवन में प्रेरणा देने वाली हैं, जैसे:

  1. "प्रिय प्रवास" – यह कविता भी राष्ट्रीयता और भारतीय संस्कृति के प्रेम को दर्शाती है।

  2. "विजयिनी यात्रा" – इसमें मानव जीवन की विजय और संघर्ष की बातें हैं।


प्रश्न 2. भवानी प्रसाद मिश्र की ‘प्राणी वही प्राणी है’ कविता पढ़िए तथा दोनों कविताओं के भावों में व्यक्त हुई समानता को लिखिए।
उत्तर- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता "प्राणी वही प्राणी है" पढ़ने पर उसमें व्यक्त मानवीय भावनाओं और अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की कविता "कर्मवीर" के बीच कुछ समानताएँ पाई जा सकती हैं। दोनों कविताएँ मनुष्य के जीवन और उसकी भूमिका के बारे में गहन विचार प्रस्तुत करती हैं। आइए, दोनों कविताओं के भावों में व्यक्त समानताओं पर विचार करें:


1. कर्तव्य और कर्म पर जोर:

  • "कर्मवीर" में हरिऔध जी कर्म की महत्ता पर बल देते हैं और बताते हैं कि मनुष्य का असली धर्म निरंतर परिश्रम करना है। कविता प्रेरित करती है कि चाहे कैसी भी परिस्थितियाँ हों, हमें कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होना चाहिए।

  • "प्राणी वही प्राणी है" कविता में भी कर्म और कर्तव्य का भाव मौजूद है। मिश्र जी बताते हैं कि जो व्यक्ति अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों को समझता है, वही सच्चे अर्थों में प्राणी कहलाने योग्य है।


2. मानवता और परोपकार का संदेश:

  • "कर्मवीर" में हरिऔध जी कर्म को एक प्रकार का परोपकार मानते हैं, जो समाज और देश के उत्थान के लिए आवश्यक है।

  • "प्राणी वही प्राणी है" कविता में भी मानवता और दूसरों के प्रति दयालुता का भाव है। यह कविता यह संदेश देती है कि सच्चा प्राणी वही है जो दूसरों के दुख को समझे और उनके प्रति सहानुभूति रखे।


3. जीवन की सच्ची पहचान:

  • दोनों कविताएँ मनुष्य की वास्तविक पहचान और उसके कर्तव्यों पर आधारित हैं। "कर्मवीर" में, जीवन की सार्थकता को कर्म में बताया गया है, जबकि "प्राणी वही प्राणी है" में जीवन की सच्ची पहचान मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं में बताई गई है।


निष्कर्ष:

इन कविताओं में एक साझा संदेश है कि मनुष्य का सच्चा जीवन कर्तव्य, कर्म, और मानवता के मार्ग पर चलने से ही सार्थक होता है। दोनों कविताएँ हमें अपने जीवन में कर्म करते रहने, मानवीय मूल्यों को अपनाने, और दूसरों की भलाई के लिए कार्य करने की प्रेरणा देती हैं।


Benefits of NCERT Solutions for Class 10 Hindi Chapter 3 Manushyata

  • NCERT Solutions for Class 10 Hindi Chapter 3 Manushyata provides clear and simple explanations, helping students grasp the concepts the lesson easily.

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Conclusion

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