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NCERT Solutions for Class 11 Biology Chapter 17 - In Hindi

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Last updated date: 17th Apr 2024
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NCERT Solutions for Class 11 Biology Chapter 17 Breathing and Exchange of Gases in Hindi PDF Download

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Class:

NCERT Solutions for Class 11

Subject:

Class 11 Biology

Chapter Name:

Chapter 17 - Breathing and Exchange of Gases

Content-Type:

Text, Videos, Images and PDF Format

Academic Year:

2024-25

Medium:

English and Hindi

Available Materials:

Chapter Wise

Other Materials

  • Important Questions

  • Revision Notes


NCERT, which stands for The National Council of Educational Research and Training, is responsible for designing and publishing textbooks for all the classes and subjects. NCERT textbooks covered all the topics and are applicable to the Central Board of Secondary Education (CBSE) and various state boards.


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Competitive Exams after 12th Science

Access NCERT Solutions for Class XI Biology Chapter 17 - श्वसन और गैसों का विनिमय

1. जैव क्षमता की परिभाषा दीजिए और इसका महत्व बताइए।

उत्तर: जैव क्षमता अंत:श्वास आरक्षित वायु (Inspiratory Reserve Air Volume, IRV), प्रवाही वायु (Tidal Air Volume, TV) तथा उच्छ्वास आरक्षित वायु (Expiratory Reserve Air Volume, ERV) का योग (IRV + TV + ERV - 3000 + 500 + 1100 = 4600 मिली) फेफड़ों की जैव क्षमता होती है। यह वायु की वह कुल मात्रा होती है जिसे हम पहले पूरी चेष्टा द्वारा फेफड़ों में भरकर पूरी चेष्टा द्वारा शरीर से बाहर निकाल सकते हैं। जिस व्यक्ति की जैव क्षमता जितनी अधिक होती है,  उसके शरीर की जैविक क्रियाओं के लिए उतनी ही अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है। खिलाड़ियों, पर्वतारोही, तैराक आदि की जैव क्षमता अधिक होती है। युवक की जैव क्षमता प्रौढ़ की अपेक्षा अधिक होती है। पुरुषों की जैव क्षमता स्त्रियों की अपेक्षा अधिक होती है। यह उनकी कार्य क्षमता को प्रभावित करती है।


2. सामान्य निःश्वसन के उपरान्त फेफड़ों में शेष वायु के आयतन को बताएं।

उत्तर: वायु की वह मात्रा जो सामान्य नि:श्वसन (उच्छ्वास) के उपरान्त फेफड़ों में शेष रहती है, कार्यात्मक अवशेष सामर्थ्य (Functional Residual Capacity, FRC) कहलाती है। यह उच्छ्वास आरक्षित वायु (Expiratory Reserve Air Volume, ERV) तथा अवशेष वायु (Residual Air Volume, RV) के योग के बराबर होती है। इसकी सामान्यतया मात्रा 2300 मिली होती है।

FRC  =  ERV  +  RV

S = 1100 + 1200 S मिली

S = 2300S मिली।


3. गैसों का विसरण केवल कूपकी क्षेत्र में होता है, श्वसन तंत्र के किसी अन्य भाग में नहीं, क्यों?

उत्तर: गैसीय विनिमय मनुष्य के फेफड़ों में लगभग 30 करोड़ वायु कोष्ठक या कूपिकाएँ (alveoli) होते हैं। इनकी पतली भित्ति में रक्त केशिकाओं को घना जाल फैला होता है। श्वासनाल (trachea), श्वसनी (bronchus), श्वसनिका (bronchiole), कूपिका नलिकाओं (alveolar duct) आदि में रक्त केशिकाओं का जाल फैला हुआ नहीं होता। इनकी भित्ति मोटी होती है। अत: कूपिकाओं (alveoli) को छोड़कर अन्य श्वसन भागों में गैसीय विनिमय नहीं होता। सामान्यतया ग्रहण की गई 500 मिली प्रवाही वायु में से लगभग 350 मिली कूपिकाओं में पहुँचती है, शेष श्वास मार्ग में ही रह जाती है। वायु कोष्ठकों की भित्ति तथा रक्त केशिकाओं की भित्ति मिलकर श्वसन कला (respiratory membrane) बनाती हैं। इससे O2 तथा C का विनिमय सुगमता से हो जाता है। गैसीय विनिमय सामान्य विसरण द्वारा होता है। इसमें गैसें उच्च आंशिक दबाव से कम आंशिक दबाव की ओर विसरित होती हैं। वायु कोष्ठकों में O2 का आंशिक दबाव 100 - 104 mmHg और CO2 को आंशिक दबाव 40 mmHg होता है। फेफड़ों में रक्त कोशिकाओं में आए अशुद्ध रुधिर में O2 का आंशिक दबाव 40 mmHg और CO2 का आंशिक दबाव 45 - 46 mmHg होता है।


Air bracket


ऑक्सीजन वायु कोष्ठकों की वायु से विसरित होकर रक्त में जाती है और रक्त से CO2 विसरित होकर वायु कोष्ठकों की वायु में जाती है। इस प्रकार वायु कोष्ठकों से रक्त ले जाने वाली रक्त कोशिकाओं में रक्त ऑक्सीजन युक्त (Oxygenated) होता है। फेफड़ों से निष्कासित वायु में O2 लगभग 15.7% और CO2 लगभग 3.6% होती है।


4. CO2 के परिवहन (ट्रांसपोर्ट) की मुख्य क्रियाविधि क्या है? व्याख्या कीजिए।

उत्तर: कार्बन डाइऑक्साइड का रुधिर द्वारा परिवहन ऊतकों में संचित खाद्य पदार्थों के ऑक्सीकरण से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड विसरण द्वारा रुधिर कोशिकाओं में चली जाती है। रुधिर कोशिकाओं द्वारा इसका परिवहन श्वसन अंगों तक निम्नलिखित तीन प्रकार से होता है

  1. प्लाज्मा में घुलकर (Dissolved in Plasma): लगभग 7%  कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन प्लाज्मा में घुलकर कार्बनिक अम्ल के रूप में होता है।

  2. बाइकार्बोनेट्स के रूप में (In the form of Bicarbonates): लगभग 70% कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन बाइकार्बोनेट्स के रूप में होता है। प्लाज्मा के अंदर कार्बनिक अम्ल का निर्माण धीमी गति से होता है। अत: कार्बन डाइऑक्साइड का अधिकांश भाग 93% लाल रुधिराणुओं में विसरित हो जाता है। इसमें से 70%  कार्बन डाइऑक्साइड से कार्बनिक अम्ल व अन्त में बाइकार्बोनेट्स का निर्माण हो जाता है। लाल रुधिराणुओं में कार्बोनिक एनहाइड्रेज एन्जाइम की उपस्थिति में कार्बनिक अम्ल का निर्माण होता है।

प्लाज्मा में, कार्बनिक एनहाइड्रेज़ एन्जाइम अनुपस्थित होता है; अत: प्लाज्मा में बाइकार्बोनेट कम मात्रा में बनता है। बाइकार्बोनेट आयन लाल रुधिराणुओं के पोटैशियम आयन $K^+$ तथा प्लाज्मा के सोडियम आयन $Na^+$ से क्रिया करके क्रमशः पोटैशियम तथा सोडियम बाइकार्बोनेट बनाता है।

  1. प्लाज्मा में - HCO3-  + Na+  →NaHCO3

  2. लाल रुधिराणुओं में - HCO3-   + K → KHCO3

क्लोराइड शिफ्ट या हैमबर्गर परिघटना (Chloride Shift or Hamberger Phenomenon) सामान्य pH तथा विद्युत तटस्थता (electrical neutrality) बनाए रखने के लिए जितने बाइकार्बोनेट आयन रुधिर कणिकाओं से प्लाज्मा में आते हैं, उतने ही क्लोराइड आयन Cl-  रुधिर कणिकाओं में जाकर उसकी पूर्ति करते हैं। इस क्रिया के फलस्वरूप प्लाज्मा में बाइकार्बोनेट तथा लाल रुधिर कणिकाओं में क्लोराइड आयनों का जमाव हो जाता है। इस क्रिया को क्लोराइड शिफ्ट (chloride shift) कहते हैं। श्वसन तल पर प्रक्रियाएँ विपरीत दिशा में होती हैं जिससे $CO_2$ मुक्त होकर वायुमण्डल में चली जाती है।

  1. कार्बोक्सी हीमोग्लोबिन के रूप में (In the form of Carboxyhemoglobin):

कार्बन डाइऑक्साइड का लगभग 23%  भाग लाल रुधिर कोशिकाओं के हीमोग्लोबिन से मिलकर अस्थायी यौगिक बनाता है।

हीमोग्लोबिन + CO2 → कार्बोक्सी हीमोग्लोबिन

सोडियम तथा पोटैशियम के बाइकार्बोनेट्स तथा कार्बोक्सीहीमोग्लोबिन आदि पदार्थों से युक्त रुधिर अशुद्ध होता है। यह रुधिर ऊतकों और अंगों से शिराओं द्वारा हृदय में पहुंचता है। हृदय से यह रुधिर फुफ्फुस धमनियाँ द्वारा फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए जाता है। फेफड़ों में ऑक्सीजन की अधिक मात्रा होने के कारण रुधिर की हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन से मिलकर ऑक्सीहीमोग्लोबिन बनाती है। ऑक्सीहीमोग्लोबिन, हीमोग्लोबिन की अपेक्षा अधिक अम्लीय होता है। ऑक्सीहीमोग्लोबिन के अम्लीय होने के कारण श्वसन सतह पर कार्बोनेट्स तथा कार्बनिक अम्ल का विखंडन (decomposition) होता है।

(क) 2NaHCO3 → Na2CO3 +H2O + CO2

(ख) KHCO₃ → K₃CO₃ + H₃O+ + CO2-

(ग) H2CO3→H2O+ CO2

कार्बोक्सी हीमोग्लोबिन तथा प्लाज्मा प्रोटीन के रूप में बने अस्थायी यौगिक भी ऑक्सीजन से संयोजित होकर कार्बन डाइऑक्साइड को मुक्त कर देते है।

कार्बोक्सी हीमोग्लोबिन → हीमोग्लोबिन  + CO2

उपर्युक्त प्रकार से मुक्त हुई कार्बन डाइऑक्साइड रुधिर कोशिकाओं तथा फेफड़ों की पतली दीवारों से विसरित होकर फेफड़ों में पहुँचती है जहाँ से यह उच्छ्वास द्वारा बाहर निकाल दी जाती है।


 5. कूपिका वायु की तुलना में वायुमंडलीय वायु में $pO_2$ तथा $pCO_2$ कितनी होगी? मिलान कीजिए।

(i) pO2 न्यून, pCO2 उच्च

(ii) pO2 उच्च, pCO2 न्यून

(iii) pO2 उच्च, pCO2 उच्च

(iv) pO2 न्यून, pCO2 न्यून

उत्तर: (ii) pO2 उच्च, pCO2 न्यून। (वायुमंडलीय वायु में O2 का आंशिक दाब 159 तथा CO2 का आंशिक दाब 0.3 होता है, जबकि कूपिका वायु में O2 का आंशिक दाब 104 तथा CO2 का आंशिक दाब 40 होता है।


6. सामान्य स्थिति में अन्तः श्वसन प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।

उत्तर: सामान्य श्वासोच्छ्वास (breathing) या श्वसन अनैच्छिक होता है। इसमें पसलियों की गति की भूमिका 25% और डायाफ्राम की भूमिका 75%  होती है।

अन्तःश्वसन या प्रश्वसन (Inspiration): सामान्य स्थिति में अन्त:श्वसन में गुम्बदनुमा डायफ्राम पेशियों में संकुचन के कारण चपटा सा हो जाता है। डायफ्राम की गति के साथ बाह्य अन्तरापर्शक पेशियों (external intercostal muscles) में संकुचन से पसलियां सीधी होकर ग्रीवा की तथा बाहर की तरफ खिंचती है। इससे उरोस्थि (sternum) ऊपर और आगे की ओर उठ जाती है। इन गतियों के कारण वक्ष गुहा का आयतन बढ़ जाता है और फेफड़े फूल जाते हैं। वक्ष गुहा और फेफड़ों में वृद्धि के कारण वायु कोष्ठकों या कूपिकाओं (alveoli) में वायुदाब लगभग 1 से 3 mmHg कम हो जाता है। इसकी पूर्ति के लिए वायुमंडलीय वायु श्वास मार्ग से कूपिकाओं में पहुँच जाती है। इस क्रिया को अन्तःश्वास कहते हैं। इसके द्वारा मनुष्य (अन्य स्तनी) वायु ग्रहण करते हैं।


Mechanism of Breathing - (A) Inhalation (B) Exhalation


7. श्वसन का नियमन कैसे होता है?

उत्तर: श्वसन का नियमन मस्तिष्क के मेड्यूला (medulla) एवं पोन्स वेरोलाई (Pons varolii) में स्थित श्वसन केन्द्र (respiratory centre) पसलियों तथा डायफ्राम से संबंधित पेशियों की क्रिया का नियमन करने श्वासोच्छ्वास (breathing) या श्वसन (respiration) का नियमन करता है। श्वास क्रिया तंत्रिकीय नियंत्रण में होती है। यही कारण है कि हम अधिक देर तक श्वास नहीं रोक पाते हैं। फेफड़ों की भित्ति में ‘स्ट्रेच संवेदांग’ (stretch receptors) होते हैं। फेफड़ों के आवश्यकता से अधिक फूल जाने पर ये संवेदांग पुनर्निवेश नियंत्रण (feedback control) के अन्तर्गत नि:श्वसन को तुरन्त रोकने के लिए हेरिंग बुएर रिफ्लेक्स चाप (Hering-Breuer Reflex Arch) की स्थापना करके श्वास केंद्र को उद्दीपित करते हैं, जिससे श्वास दर बढ़ जाती है। यह नियंत्रण प्रतिवर्ती क्रिया के अंतर्गत होता है।

शरीर के अंत:वातावरण में CO2 की सान्द्रता के कम या अधिक हो जाने से श्वास केन्द्र स्वतः उद्दीपित होकर श्वसन दर को बढ़ाता या घटता है। O2 की अधिकता कैरोटिड सिस्टेमिक चाप (Carotico systemic arch) में उपस्थित सूक्ष्म रासायनिक संवेदांगों को प्रभावित करती है। ये संवेदांग श्वास केंद्र को प्रेरित करके श्वसन दर को घटा या बढ़ा देते हैं।


8. pCO₂ का ऑक्सीजन के परिवहन पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर: कूपिकाओं में जहाँ pO2 उच्च तथा pCO2 न्यून होता है $H^+$  सांद्रता कम तथा ताप कम होने पर ऑक्सीहीमोग्लोबिन बनता है। ऊतकों में जहाँ pO2 न्यून तथा pCO2 उच्च होता है $H^+$  सांद्रता अधिक तथा ताप अधिक होता है। ऑक्सीहीमोग्लोबिन का विघटन होता है तथा O2, मुक्त हो जाती है। इसका अर्थ है O2 फेफड़े की सतह पर हीमोग्लोबिन के साथ मिलती है तथा ऊतकों में अलग हो जाती है। सामान्य परिस्थिति में 5 मिली O2 ऊतकों को प्रति 100 मिली ऑक्सीजनित रक्त से मिलता है।


9. पहाड़ पर चढ़ने वाले व्यक्ति की श्वसन प्रक्रिया में क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर: पहाड़ पर ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ वायु में O₂ का आंशिक दाब कम हो जाता है; अत: मैदान की अपेक्षा ऊँचाई पर श्वासोच्छ्वास क्रिया अधिक तीव्र गति से होगी। इसके निम्नलिखित कारण होते हैं - 

  1. रुधिर में घुली हुई ऑक्सीजन का आंशिक दाब कम हो जाता है। O2 रक्त में सुगमता से विसरित होती है। अतः शरीर में ऑक्सीजन परिसंचरण कम हो जाता है। इसके फलस्वरूप सिरदर्द तथा उल्टी (वमन) का आभास होता है।

  2. अधिक ऊंचाई पर वायु में ऑक्सीजन की मात्रा अपेक्षाकृत कम होती है; अत: वायु से अधिक O2 प्राप्त करने के लिए श्वासोच्छ्वास क्रिया तीव्र हो जाती है।

  3. कुछ दिनों तक ऊंचाई पर रहने से रुधिर में लाल रुधिराणुओं की संख्या बढ़ जाती है और श्वास क्रिया सामान्य हो जाती है।


10. कीटों में श्वसन क्रियाविधि कैसे होती है?

उत्तर: कीटों में श्वसन क्रियाविधि - कीटों में श्वसन हेतु ट्रैकिंया (trachea) पाए जाते हैं। कीटों के शरीर में ट्रेकिया का जाल फैला होता है। ट्रैकियो पारदर्शी, शाखामय, चमकीली नलिकाएँ होती हैं। ये श्वास रंध्रों (spiracles) द्वारा वायुमण्डल से सम्बन्धित रहती हैं। श्वास रंध्र छोटे वेश्म (atrium) में खुलते हैं। श्वास रंध्रों पर रोमाभ सदृश शुक्र तथा कपाट पाए जाते हैं। कुछ श्वास रंध्र सदैव खुले रहते हैं। शेष अन्तःश्वसन (inspiration) के समय खुलते हैं और उच्छवसन (expiration) के समय बंद रहते हैं।


Respiratory Mechanism in Insects


ट्रैकियल वेश्म (atrium) से शाखा निकलकर एक पृष्ठ तथा अधर तल पर ‘ट्रैकिया का जाल बना लेती हैं। ट्रेकिया से निकलने वाली ट्रैकि ओल्स (tracheoles) ऊतक या कोशिकाओं तक पहुंचती हैं। कीटों में गैसों का विनिमय बहुत ही प्रभावशाली होता है और O2 सीधे कोशिकाओं तक पहुंचती है। इसी कारण कीट सर्वाधिक क्रियाशील होते हैं।


11. ऑक्सीजन वियोजन वक्र की परिभाषा दीजिए। क्या आप इसकी सिग्मा आकृति का कोई कारण बता सकते हैं?

उत्तर: ऑक्सीजन वियोजन वक्र - हीमोग्लोबिन द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता ऑक्सीजन के आंशिक दबाव (partial pressure) अर्थात pO2 पर निर्भर करती है। हीमोग्लोबिन-की वह प्रतिशत मात्रा जो ऑक्सीजन ग्रहण करती है, इसकी प्रतिशत संतृप्ति (percentage saturation of haemoglobin) कहलाती है; जैसे फेफड़ों में रक्त के ऑक्सीजन कृत होने पर O2 का आंशिक दबाव pO2 लगभग 97 mmHg होता है। इस  pO2 पर हीमोग्लोबिन की प्रतिशत संतृप्ति लगभग 98% होती है।

ऊतकों से वापस आने वाले रक्त में O2 का आंशिक दबाव pO2 लगभग 40 mmHg होता है, इस pO2 पर हीमोग्लोबिन की प्रतिशत संतृप्ति लगभग 75%  होती है। pO2 तथा हीमोग्लोबिन की प्रतिशत संतृप्ति के सम्बन्ध को ग्राफ पर अंकित करने पर एक सिग्मा वक्र (sigmoid curve) प्राप्त होता है।  इसे ऑक्सीजन वियोजन वक्र कहते हैं। ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन वियोजन वक्र पर शरीर ताप एवं रक्त के pH का प्रभाव पड़ता है। ताप के बढ़ने या pH के कम होने  पर यह वक्र दाहिनी ओर खिसकता है। इसके विपरीत ताप के कम होने या pH के अधिक होने से ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन वक्र बाईं ओर खिसकता है। रक्त में CO2 की मात्रा बढ़ने या इसका pH घटने ( आयन की संख्या बढ़ने से) पर O2 के प्रति हीमोग्लोबिन की आकर्षण शक्ति कम हो जाती है। उसी को बोहर प्रभाव (Bohr effect) कहते हैं। यह क्रिया ऊतकों में होती है। इस प्रकार बोहर प्रभाव का योगदान हीमोग्लोबिन को फेफड़ों से ऊतकों तक ऑक्सीजन के परिवहन को प्रोत्साहित करता है।


Oxygen dissociation curve


Partial Pressure of Oxygen in mmHg

% Saturation of Hb

10

13.5

20

20

30

25

40

28

50

32

60

35

70

37

80

39.5

90

51.3

100

69.2

फेफड़ों में हीमोग्लोबिन को O2 मिलते ही CO2 के प्रति इसका आकर्षण कम हो जाता है और कार्बेमिनो हीमोग्लोबिन CO2 त्यागकर सामान्य हीमोग्लोबिन बन जाता है। अम्लीय हीमोग्लोबिन H+  आयन मुक्त करता है जो बाइकार्बोनेट HCO3 से मिलकर कार्बनिक अम्ल बनाते हैं। यह शीघ्र ही CO2 तथा H₂O में टूटकर CO2 को मुक्त कर देता है। इसे हाल्डेन प्रभाव (Haldane effect) कहते हैं। हाल्डेन प्रभाव फेफड़ों में CO2 के बहिष्कार को और ऊतकों में O2 के बहिष्कार को प्रेरित करता है।


12. क्या आपने अव-ऑक्सीयता (हाइपोक्सिया) (न्यून ऑक्सीजन) के बारे में सुना है। इस सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश कीजिए व साथियों के बीच चर्चा कीजिए।

उत्तर: अव-ऑक्सीयता (Hypoxia): इस स्थिति का सम्बन्ध शरीर की कोशिकाओं ऊतकों में ऑक्सीजन के आंशिक दबाव में कमी से होता है। यह ऑक्सीजन की कम आपूर्ति के कारण होता है। वायुमण्डल में पहाड़ों पर 8000 फुट से अधिक ऊँचाई पर वायु में O2 का दबाव कम हो जाता है। इससे सिरदर्द, वमन, चक्कर आना, मानसिक थकान, श्वास लेने में कठिनाई आदि लक्षण प्रदर्शित होते हैं। इसे कृत्रिम हाइपोक्सिया (artificial hypoxia) कहते हैं। यह रोग प्रायः पर्वतारोहियों को हो। जाता है। शरीर में) हीमोग्लोबिन की कमी के कारण रक्त की ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता प्रभावित होती है। इसे एनीमिया हाइपोक्सिया (anaemia hypoxia) कहते हैं।


13. निम्न के बीच अंतर करें:-

(क) IRV व ERV 

उत्तर:  

  1. IRV : अन्त:श्वसन सुरक्षित आयतन (inspiratory reserve volume) वायु आयतन की वह अतिरिक्त मात्रा है जो एक व्यक्ति बलपूर्वक अन्त:श्वसन कर सकता है। यह औसतन 2500 मिली से 3000 मिली होती है।

  2. ERV : नि:श्वसन सुरक्षित आयतन (expiratory reserve volume) वायु आयतन की वह अतिरिक्त मात्रा है जो एक व्यक्ति बलपूर्वक नि:श्वसित कर सकता है। यह औसतन 1000 मिली से 1100 मिली होता है।

(ख) अन्तःश्वसन क्षमता व निःश्वसन क्षमता ।

उत्तर: 

  1. अन्तःश्वसन क्षमता (Inspiratory Capacity, IC): सामान्यतः नि:श्वसन उपरान्त वायु की कुल मात्रा (आयतन) जिसे एक व्यक्ति अन्त:श्वसन कर सकता है। इसमें ज्वारीय आयतन तथा अन्तः श्वसन सुरक्षित आयतन सम्मिलित होते हैं (TV + IRV)।

  2. निःश्वसन क्षमता (Expiratory Capacity, EC): सामान्यतः अन्तः श्वसन उपरान्त वायु की कुल मात्रा (आयतन) जिसे एक व्यक्ति नि:श्वसित कर सकता है। इसमें ज्वारीय आयतन और नि:श्वसन सुरक्षित आयतन सम्मिलित होते हैं (TV + ERV)।

(ग) जैव क्षमता तथा फेफड़ों की कुल धारिता ।

उत्तर: 

  1. जैव क्षमता (Vital Capacity): बलपूर्वक नि:श्वसन के बाद वायु की वह अधिकतम मात्रा जो एक व्यक्ति अन्त:श्वसन कर सकता है अथवा वायु की वह अधिकतम मात्रा जो एक व्यक्ति बलपूर्वक अन्त:श्वसन के पश्चात नि:श्वसित कर सकता है।

  2. फेफड़ों की कुल धारिता (Total Lung Capacity): बलपूर्वक नि:श्वसन के पश्चात् फेफड़ों में समायोजित (उपस्थित) वायु की कुल मात्रा। इसमें RV, ERV, TV  तथा IRV सम्मिलित हैं। यानी जैव क्षमता + अवशिष्ट आयतन (VC + RV)।


14. ज्वारीय आयतन क्या है? एक स्वस्थ मनुष्य के लिए एक घण्टे के ज्वारीय आयतन (लगभग मात्रा) को आकलित करें।

उत्तर: ज्वारीय आयतन (Tidal Volume, TV): सामान्य श्वसन क्रिया के समय प्रति अंतः:श्वसन या नि:श्वसित वायु का आयतन ज्वारीय आयतन कहलाता है। यह लगभग 500 मिली होता है अर्थात स्वस्थ मनुष्य लगभग 6000 से 8000 मिली वायु प्रति मिनट की दर से अन्त:श्वसन  नि:श्वसित कर सकता है।


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